23 April 2020

Heart Touching Story | उम्मीदों का सफर बुढ़ापा

Heart touching Story in Hindi

उम्मीदों का सफर बुढ़ापा 

यह बात उन दिनों की है, जब नरेंद्र जी रिटायर हुए थे। नरेंद्र जी की एक लाड़ली बिटिया और एक होनहार बेटा था। नरेंद्र जी ने अपने दोनों ही बच्चो को बड़े प्यार से पाला था। मगर छोटी बच्ची स्नेहा से उन्हें कुछ ज्यादा ही लगाव था। 

अभी कुछ दिन पहले ही नरेंद्र जी ने अपनी लाड़ली बिटिया का विवाह किया था। शादी विवाह में कुछ कर्ज हो गया था। नरेंद्र जी ने सोचा था, रिटायरमेन्ट पर जो कुछ पैसे मिलेंगे, उससे इस कर्जे को चूका देंगे और उन्होंने कुछ वैसा ही किया। संतोष इस बात का था कि शादी के बाद बेटी स्नेहा अपने पति और ससुराल वालो के साथ खुशहाल थी। 

बड़ा बेटा इंजीनियरिंग की पढाई के आखरी वर्ष में था। तो उसके भविष्य के प्रति चिंता उन्हें परेशान किया करती थी। क्योकि घर बनवाने में और बिटिया की शादी विवाह करने में उनका हाथ बिलकुल खाली हो चूका था। तभी यकायक एक दिन बेटे अरुण ने उन्हें फ़ोन पर बोला कि पापा आखरी समेस्टर की फीस और हॉस्टल इत्यादि के लिए उसे तीन लाख रुपयों की सख्त जरुरत है। पिता ने बोला बेटा चिंता मत करो दस दिनों में कुछ न कुछ प्रबंध करके पैसे भेज देता हूँ। 

नरेंद्र जी की बाते उनकी पत्नी सुषमा भी सुन रही थी। बाद में पत्नी ने पूछा, "अजी अभी तो जो पैसे मिले थे उससे तुमने शादी में हुए कर्ज को भर दिया है। अब इतने सारे पैसो का प्रबंध कैसे करोगे?"

नरेंद्र ने कहा- अरे भाग्यवान, बच्चे की पढाई पूरी होने वाली है। अब यदि उसकी पढाई पैसो के लिए रुकी तो यह ठीक नहीं होगा। देखता हूँ किसी दोस्त से उधार ले लूंगा और जब अरुण काम करने लगेगा धीरे धीरे उनके पैसे भी दे दूंगा। 

नरेंद्र ने अब अपने काफी दोस्तों से पैसे की मांग की, परन्तु सभी ने इंकार कर दिया। नरेंद्र ने महसूस किया कि अब लोगो का व्यवहार कुछ बदल सा गया है। जो सामने से कहते थे पैसे की जरुरत होगी तो बोलना, आज वह साफ़ बहाना कर जा रहे है। 

धीरे धीरे आठ दिन बीत चुके थे और पैसो के नाम पर एक रूपये का प्रबंध नहीं हो पाया था। तभी अचानक उन्हें अपने बहुत ही गहरे दोस्त संजय की याद आ गई। 

(संजय एक बड़ी कम्पनी में काम करता था। अच्छी खासी जमीन जायदाद और पैसे वाला था। इसके आलावा संजय के तंगी वाले दिनों में नरेंद्र ने उसकी काफी सहायता भी की थी)

अगले दिन सुबह नरेंद्र अपने दोस्त संजय के घर पहुंच गया। घर का दरवाजा एक लड़की ने खोला और वह लड़की नरेंद्र को देखकर काफी खुश हो गई। पहले तो उसने नरेंद्र के चरण स्पर्श किये और बोला- अंकल मैं आपसे बहुत नाराज हूँ और आपसे बात भी नहीं करुँगी। आपको मालूम है आप पुरे चार साल बाद हमारे यहाँ आये है। 

नरेंद्र ने बिटिया के सर पर हाथ रखा और बोला- बेटा गलती तो है लेकिन क्या करू व्यस्तता थी इसलिए नहीं आ पाया। बेटा संजय क्या कर रहा है, उसे बुला दो और उससे कहना मैं उससे मिलने आया हूँ। 

(इतने में संजय की पत्नी आ गई)

संजय की पत्नी- भाई साहब, बड़े दिनों के बाद आना हुआ। आप लोग तो हम लोगो को भूल गए है। बच्चे और भाभी जी सभी कैसे है। 

नरेंद्र- सुषमा ठीक है वह आप सभी को बहुत याद करती है। बिटिया की शादी हो गई और अरुण (बेटा) इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा है। 

संजय की पत्नी- भाई साहब, अमृता (संजय की सुपुत्री का नाम) के पापा तो कुछ काम से बाहर गए हुए है, शाम तक आ जायेगे, आप बैठिये। 

इसके बाद संजय की पत्नी घर में चली जाती है। अमृता और नरेंद्र काफी देर तक एक दूसरे से बात चित करते रहते है। अमृता अपने पिता के मित्र और अपने चाचा जी की दिल लगाकर सेवा करती है। उनका खाना पीना इत्यादि जरूरतों का पूरा ध्यान रखती है। 

नरेंद्र के मन में अचानक विचार आता है। देखो, समय कितना जल्दी बीत जाता है जिस बच्ची को कभी गोद में खिलाया था आज कितनी बड़ी हो गई है। कल जिसका ध्यान रखना पड़ता था आज वह उसका ध्यान रख रही है। कितनी सुशील और सभ्य संस्कार में पली है। काश अपने घर की बहु बना पाता। अमृता (संजय की सुपुत्री) और अरुण (नरेंद्र का सुपुत्र) की जोड़ी कितनी अच्छी रहेगी। 

खैर देखते देखते सायं का समय हो गया और संजय भी घर आ गया। दोनों एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हुए। कुछ देर बाद नरेंद्र ने उसके घर आने का उदेश्य बताया। 

संजय बोला- यार, मैं पैसे तो दूंगा लेकिन हमारी एक शर्त है। मैं चाहता हूँ पढाई पूरी कर लेने के बाद अरुण और अमृता की शादी हो जाये। मेरी मुलाकात अरुण से लगभग हर सप्ताह हो ही जाती है क्योकि किसी न किसी कार्य से मुझे उसके हॉस्टल के पास जाना होता है। वही पर मेरे ऑफिसियल क्लाइंट रहते है। तो बोलो मंजूर है। 

नरेंद्र बड़ा खुश हुआ क्योकि जिस बात को बोलने में वह संकोच कर रहा था वही बात उसके दोस्त ने शर्त के रूप में रख दिया। नरेंद्र ने हां कर दिया। 

इसके बाद तुरंत संजय ने अरुण के बैंक खाते में तीन लाख रूपये डाल दिए। 

समय गुज़रता गया और एक दिन अरुण ने अपनी पढाई कम्प्लीट की और एक बड़ी कंपनी में उसकी जॉब भी लग गई। इधर पत्नी सुषमा का स्वास्थ ख़राब होने लगा। डॉक्टर और घर के चक्करो का दौर शुरू हो गया। 

इधर एक दिन माँ ने अपने बच्चे से बहु लाने की बात कही और बेटे का फैसला सुनकर दोनों के पैरो के निचे से जमीन खिसक गई। 

बेटे ने कहा- माँ मैं कालेज के एक लड़की से बहुत प्यार करता हूँ और उसी से शादी करना चाहता हूँ। माँ यदि यह तुम्हारी बहु बनेगी तो तुम दोनों की खूब सेवा करेगी। संस्कार और सेवा की कोई कमी नहीं होगी। 

माँ बाप ने बेटे को बहुत समझाने की कोशिस की परन्तु अरुण पर कोई असर नहीं हुआ। खुद के वादे, समाज, परिवार और दूसरे लोगो का सामना कैसे होगा सोचकर पति-पत्नी का दिल बैठा जा रहा था। लेकिन कहते है जो दुनियाँ से जीत जाता है वह खुद से हार जाता है। आखिर दोनों को बच्चे की बात स्वीकार्य करनी ही पड़ी। 

इधर दोस्त संजय के पैसो को चुकाने के लिए अपनी एक विशवा जमीन नरेंद्र ने बेच दी और व्याज के साथ पुरे पैसे लेकर नरेंद्र अपने दोस्त के पास गया और अपनी परेशानी बताते हुए, उसने अपने दोस्त को उसके पैसे दे दिए। संजय ने अपने दोस्त की मज़बूरी को समझ लिया और अपने तीन लाख लेकर शेष पैसे उसने लौटा दिया। 

अब नई बहु घर में आ चुकी थी। बहु के आने से नरेंद्र और उनकी पत्नी सुषमा के खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। बहु ने घर में आते ही रसोई और घर के दूसरे कामो को संभाल लिया। जिससे सुषमा (उसकी सास) को काफी आराम मिला।

अब घर का खर्च नरेंद्र की पेंशन पर चल रहा था। काफी कोशिसो के बाद भी अरुण को जॉब नहीं मिल पा रही थी। अरुण घर के रोजमर्रा के जरूरतों के लिए पिता पर निर्भर था। माँ के स्वास्थ्य की समस्या और घर के खर्च अब पिता को परेशान कर रहे थे।

एक दिन नरेंद्र ने अपने बेटे अरुण से कहा- "बेटा, मैंने अपने एक दोस्त से तुम्हारे नौकरी के लिए बात की है। तुम उनसे जाकर मिल लो। घर में कुछ पैसे आने लगेंगे तो घर चलाना आसान हो जायेगा।"

बेटा अरुण शाम को घर लौटकर पिता को बोला- "मैं ऐसे छोटे छोटे काम नहीं कर सकता। मुझे मेरे एक दोस्त ने अपने बॉस से बात करके बताया है। मैं कल वहाँ जाकर जॉब की बात करता हूँ। उम्मीद है मेरा काम लग जायेगा। "

दूसरे दिन अरुण ने घर वालो को यह खुश खबरी दी और बताया उसे काम मिल चूका है। उसे उसकी कंपनी की ओर से विदेश जाने का ऑफर मिला है। सैलरी भी बहुत अच्छी है, अब वह विदेश जाकर जॉब करेगा।

माँ की आँखे भर आई। बुढ़ापा और बीमारी सामने खड़ी थी। एक औलाद और वह भी विदेश जाने की बात कर रहा है। नरेंद्र ने पत्नी को उसके बेटे के भविष्य को दिखाकर समझाया।

दूसरे दिन अरुण अपना सामान पैक करके चला गया। रोज शाम में बेटा फोन के रूप में माता पिता के सामने चला आता और हर महीने पैसो का एक बंडल। खैर जैसे तैसे घर के खर्च चल रहे थे। अब जिंदगी एक नई दिशा में करवट ले रही थी।

बेटे को घर छोड़े लगभग 6 माह बीत चुके थे। बहु को माँ की सेवा में भार महसूस होने लगा था। बेटे से कई बार बात करते हुए नरेंद्र ने सुन रखा था, "तुमसे शादी करके मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है। इन दो बूढ़ो को मेरे ऊपर डालकर चले गए हो। एक नौकरानी से बेकार जिंदगी हो गई है मेरी।"

धीरे धीरे 8 माह बीत गए थे। अब बहु ने बुजुर्ग पति पत्नी के जीवन को कुछ और दूभर बना दिया था। उसकी कड़वी बाते इन बुजुर्ग दम्पतियो के दिल में नस्तर के सामान घाव बना दिया करती थी। पत्नी सुषमा तो रोकर अपने आँसू से अपने दुःखो को कुछ कम कर लेती परन्तु नरेंद्र के लिए जीवन तो जैसे रेगिस्तान में बिछे काटो जैसा बन गया था।

एक दिन बेटे का फोन आया। बेटे ने माँ से कहा- "माँ मैं अपने दोस्त के हाथ से तुम्हारी बहु के लिए एयर टिकट दे रहा हूँ, उसे भेज देना।"

माँ ने पूछा- "बेटा काफी दिन हो गए। तुम्हे देखने की इच्छा हो रही है। तुम कब तक आओगे।"

बेटे ने उत्तर दिया- "माँ, काम बहुत ज्यादा है। कंपनी में मेरी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। मैं अभी नहीं आ सकता। बहु को भेज देना, देखता हूँ जैसे ही छुटियाँ मिलती है मैं आ जाऊंगा।

दूसरे दिन बहु ने भी घर छोड़ दिया। अब सिर्फ बूढ़े नरेंद्र और उसकी पत्नी घर में रह गए। एक दूसरे से बातचीत करते पुरानी बातो को याद करते जिंदगी कट रही थी। कभी एलबम में बच्चो की तस्वीरें तो कभी टेलीविजन बस इसी बीच में जिंदगी की गाड़ी सैर कर रही थी।

पहले तो अरुण के फ़ोन आने में दो से तीन दिन लगते थे। परन्तु, अब तो महीनो बात नहीं होती थी। दोनों बुजुर्ग दंपत्ति की निगाहे दरवाजे पर रुकी रहती थी। एक दिन दरवाजा खुलेगा और उनके आँखों का तारा आकर उनके सीने से लग जायेगा।

नरेंद्र के स्वास्थ्य की स्तिथि भी अब कुछ ज्यादा ख़राब होने लगी थी। पत्नी को चलने फिरने में असमर्थ हो चुकी थी। डॉक्टर को देने के लिए पैसे की कमी और भोजन की तंगी ने दोनों को विवश बना दिया था।


एक दिन सुबह जब सुषमा उठी। उसने महसूस किया कि शाम में भोजन करने के बाद नरेंद्र ने दवा नहीं दी थी और न जाने कब उसे नींद आ गई और वह सो गई।

सुषमा ने पति को आवाज लगाई- "अजी सुनते हो, मुझे वाशरूम जाना है। थोड़ा आ जाओ, रात में तुमने दवा नहीं दी। अब तुम भुलक्क़ड हो गए हो। चलो आ भी जाओ।"

कुछ देर बाद भी कोई हलचल नहीं हुई। चारो तरफ एकदम सन्नाटा। सुषमा के दिल में एक अनजाना सा डर जगह बनाने लगा।

सुषमा ने फिर आवाज लगाई- "अजी सुनते हो, परेशान मत करो। मुझे घबराहट हो रही है।"

परन्तु फिर भी कोई हलचल नहीं हुई। सुषमा का दिल बैठा जा रहा था। अनचाहे उसके चेहरे पर आंसू बहने लगे। उसने खुद को अपने बिस्तर से निचे गिरा दिया और खिसकते खिसकते रसोई की ओर बढ़ने लगी।

रास्ते में नरेंद्र गिरा हुआ था। आवाज लगाती शोर मचाती अपने आपको खींचती हुई नरेंद्र के पास तक पहुंची। उसके शरीर को छूते ही एक जोर की चीख के साथ सुषमा की सांसे भी बंद हो गई थी।

इधर पास पड़ोस का मज़मा इकठ्ठा हो चूका था। दरवाजा अंदर से बंद और घर के अंदर फोन की घंटी को भी कोई रिसीव करने वाला कोई नहीं था। पड़ोसियों ने पुलिस बुलवाया और उसके बाद दोनों का एक साथ अंतिम सस्कार कर दिया गया।

निष्कर्ष- 

१- बुढ़ापे के लिए किसी के ऊपर निर्भर रहने से ज्यादा बेहतर है कि खुद के लिए पेंशन की व्यवस्था करे। किसी जमीन, किसी प्रॉपर्टी या बैंक में इकठ्ठा धनराशि पर भरोषा न करे। क्योकि अक्सर बुढ़ापे से पहले या तो यह खर्च हो जाता है या तो बच्चो के अधिकार में चला जाता है।

२- जीवन में अपने बुजुर्गो को जरूर ध्यान दे। वह अपनी सारी ख़ुशी आपके ख़ुशी में देखते है। उन्हें आपके थोड़े से समय की जरुरत होती है। उनका ध्यान रखे।

३- आपके आखरी पलो तक आपका जीवन साथी आपके साथ रहेगा। उसके महत्व को जरूर समझे।

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