06 December 2024

जीवन बीमा एजेंसी के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

जीवन बीमा एजेंसी के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न



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जीवन बीमा कारोबार में एक जीवन बीमा अभिकर्ता का कार्य केवल जीवन बीमा पॉलिसियों की विक्री तक सिमित नहीं होता है। यह एक जिम्मेदारी है जिसे जीवन बीमा अभिकर्ता निभाता है। एक अभिकर्ता अपने ग्राहकों को उचित जीवन बीमा पॉलिसी की सलाह और सफल विक्री से, उनके ग्राहकों के परिवारों के भविष्य को आर्थिक रूप सुरक्षित करता है।

हालाँकि, इस तरह की भूमिकाओं को निभाते समय एक अभिकर्ता को कई तरह के सवालों का सामना भी करना पड़ता है। यह सवाल उनके व्यक्तिगत बीमा कारोबार, पोलिसीधारको के व्यवहार, पॉलिसी चयन एवं बीमा कंपनियों के नियम और शर्तो से सम्बंधित होते हैं। जीवन बीमा बाजार के इस लेख का उदेश्य, जीवन बीमा अभिकर्ताओं के उन सभी सवालों का उत्तर प्रदान करना है, जो उनके प्रतिदिन के कार्यो और कारोबार के विकास में सहायक होते हैं।

हम इस FAQs को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं कि यह न केवल नए अभिकर्ताओं के लिए सहायक हो, बल्कि यह उन अनुभवी जीवन बीमा अभिकर्ताओं के लिए भी लाभप्रद सिद्ध हो, जो अपने बीमा कारोबार को और भी बेहतर बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं।

हमें यह पूरा भरोषा है कि हमारी यह कोशिस पॉलिसी विक्री के सही तरीके, ग्राहकों से भरोसेमंद संवाद, बीमा कंपनी के दिशानिर्देशों का पालन और बीमा कारोबार में होने वाली त्रुटियों से बचने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करेगी। यदि आप एक जीवन बीमा अभिकर्ता हैं तो हमारा यह लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। आइये विभिन्न प्रश्नो एवं उनके उत्तरों के माध्यम से, बीमा कारोबार को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य करें।

जीवन बीमा अभिकर्ताओं के प्रश्नों के उत्तर

जीवन बीमा एजेंट किसे पॉलिसी बेच सकते हैं?

जीवन बीमा एजेंट को ऐसे लोगों को पॉलिसी बेचनी चाहिए जो आर्थिक रूप से स्थिर हों, जिनकी नियमित आय हो, जो स्वस्थ हों और जिनकी बीमा संबंधी ज़रूरतें स्पष्ट हों। क्लाइंट की उम्र, स्वास्थ्य और वित्तीय उद्देश्य के आधार पर सही पॉलिसी चुनना एजेंट की ज़िम्मेदारी है। इसके अलावा, एजेंट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्लाइंट की बीमा ज़रूरतें उसके बजट और दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप हों।

बीमा एजेंट पॉलिसी बेचते समय किन दस्तावेजों की जांच करें?

बीमा पॉलिसी बेचते समय, बीमा एजेंट को चाहिए की वह निम्नलिखित दस्तावेज़ों की जाँच करें:

  1. पहचान प्रमाण (जैसे- आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट)
  2. पते का प्रमाण (जैसे- बिजली बिल, राशन कार्ड, बैंक स्टेटमेंट)
  3. आय प्रमाण (जैसे- सैलरी स्लिप, ITR, बैंक स्टेटमेंट)
  4. जन्म प्रमाण पत्र (जैसे- स्कूल सर्टिफिकेट, आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट)
  5. स्वास्थ्य प्रमाण पत्र (विशेष रूप से उच्च जोखिम वाली पॉलिसियों के लिए)
  6. फ़ोटो और हस्ताक्षर (ग्राहक की पहचान सत्यापित करने के लिए)

ये दस्तावेज़ सुनिश्चित करते हैं कि ग्राहक पॉलिसी लेने के योग्य है और बाद में दावा प्रक्रिया में कोई समस्या नहीं होगी। सही दस्तावेज़ों की जाँच करने से एजेंट की ज़िम्मेदारी पूरी होती है और ग्राहकों के साथ विश्वास भी बढ़ता है।

जीवन बीमा एजेंट को किन ग्राहकों को पॉलिसी बेचने से बचना चाहिए?

जीवन बीमा एजेंटो को चाहिए कि वह ऐसे लोगों को जीवन बीमा पॉलिसी की विक्री न करे, जो- झूठी जानकारी देते हैं, उच्च जोखिम वाले व्यवसाय में होते हैं, प्रीमियम भुगतान में अस्थिरता दिखाते हैं, गलत इरादे से पॉलिसी खरीदना चाहते हैं और स्वास्थ्य रिकॉर्ड छुपाते हैं।

जीवन बीमा एजेंटो को चाहिए कि वह ऐसे लोगों की पहचान करने के लिए और ऐसे लोगों से बचने के लिए उनके दस्तावेजों की गहनता से जाँच करे और प्रत्येक पॉलिसी की विक्री से पूर्व भावी ग्राहक के पड़ोसियों और दोस्तों से, ग्राहक के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

ऐसा करने से न केवल आप अपनी एजेंसी को सुरक्षित रखते हैं बल्कि आप खुद को दावा प्रक्रिया में होने वाली परेशानियों से भी बचाते हैं।

बीमा एजेंट ग्राहक की स्वास्थ्य और आदतों की जानकारी कैसे प्राप्त करें?

जीवन बीमा पॉलिसी बेचने से पहले एजेंट को ग्राहक की आदतों और स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इसके लिए वह संभावित ग्राहक के निवास और कार्यस्थल पर रहने वाले लोगों से जानकारी प्राप्त कर सकता है। किसी बीमार व्यक्ति या ऐसी बुरी आदतों में फंसे व्यक्ति का बीमा करना जो उसके जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है, आपकी एजेंसी के लिए खतरनाक हो सकता है।

बीमा एजेंट अदृश्य बीमारियों की पहचान कैसे करें?

जीवन बीमा एजेंट की यह बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह स्वस्थ लोगों को ही जीवन बीमा पॉलिसी बेचे। ऐसे में कई ऐसी बीमारियां होती हैं जिनका अंदाजा मरीज को देखकर लगाया जा सकता है। लेकिन साथ ही कई ऐसी गंभीर बीमारियां भी होती हैं जिनका इलाज मरीज लंबे समय से करा रहा होता है, लेकिन उसे देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वह बीमार है।

ऐसी स्थिति में आप एक छोटे से झूठ का सहारा लेकर पता लगा सकते हैं कि कोई व्यक्ति बीमार है या नहीं। इसके लिए आप बीमा पॉलिसी का प्रपोजल फॉर्म भरते समय ग्राहक से पूछ सकते हैं कि क्या आप वर्तमान में किसी गंभीर बीमारी का इलाज करा रहे हैं या पिछले सालों में आपने ऐसा कोई इलाज कराया है? अगर ऐसा है तो आपको बीमा कंपनी की ओर से कुछ खास लाभ मिल सकते हैं।

04 December 2024

Agency Termination: Reasons and Fixes

Agency Termination: Reasons and Fixes



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Life Insurance Agency Business is not just limited to selling policies, but it is an important responsibility that provides financial security to the future of your policyholders' families. However, if the little things in this business are ignored then it can cause a big problem for your agency.

In this latest article of Jeevan Bima Bazaar, we will discuss the common mistakes and their preventive measures, which will not only keep your Life Insurance Agency safe but also maintain the trust of your customers.

Choosing the Right Client

As a Life Insurance Agent, your biggest responsibility is to ensure that the Life Insurance Policy is sold only to those people who are eligible for a Life Insurance Policy. Every Life Insurance Company expects from its agents that their agent will encourage such people to buy a Life Insurance Policy, who will be completely healthy.

Every Life Insurance Company believes that their agent will properly verify the medical reports and relevant documents of the customers and will maintain transparency in every proposal, understanding the seriousness of the health of the customers.

Agent's Problem in Life Insurance Sales

I have worked as a Life Insurance Advisor with India's number one Life Insurance Company known as Life Insurance Corporation of India (LIC) from the year 2001 to the year 2018. Since the year 2015, I have been continuously working as a trainer. As a trainer, I keep interacting with many Life Insurance Agents.

I feel it is important to share some of my experiences with you here. I believe that every Life Insurance Agent always tries to sell the Right Life Insurance Policy. But at the same time, every agent also wants to achieve success like MDRT/COT/TOT, he wants to get his name on the board of his branch office and also wants to get himself and his family out of financial crisis.

No agent wants that any of his clients face any problem and any client gets upset because of him. This thinking of an agent creates a big problem for him. While selling an Insurance Policy, the agent feels that if he asks his prospective client about his addiction or if he asks the client about his illness, then the client will get upset or the client will refuse to buy the policy.

Errors Made by Agents in Assessing Invisible Diseases

Generally, by looking at a sick person, it is known that the person is unwell. But, there are many such serious and life-threatening diseases due to which it cannot be told by looking at the patient normally that he is ill. Such as: diabetes, high blood pressure, early stage cancer, chronic kidney disease, thyroid, osteoporosis, liver disease, heart disease, HIV, depression, etc.

A patient suffering from the above diseases generally looks like a healthy person. For example, by looking at a patient of heart disease, you cannot tell that he is suffering from such a serious disease. Whereas he is undergoing treatment for a long period.

Many Life Insurance Agents, due to hesitation or other reasons, do not inquire about the disease of such people and sell Insurance Policies considering them healthy. When there is a death claim in such policies, such death claim is rejected. Now if the family of the deceased policyholder goes to court against this decision of the Insurance company, then the liability of the Insurance Agent increases.

In this situation, the agent's agency may be in trouble or the Insurance Claim can be recovered from the agent. Therefore, as a trainer, our suggestion for you would be to take the decision of selling a Life Insurance Policy only after properly assessing the health of Every Insurance Salesperson.

How should an Agent Accurately assess the Health of the Customer?

I believe that a Life Insurance Agent has to face many challenges to sell a correct Life Insurance Policy. Therefore, our suggestion for you would be to find out about the health and habits of the prospect at the time of prospecting. For this, you can collect information about this from the neighbors and friends of the potential customer.

Because if you work for a sick person, that is, first you explain the Insurance Policy, then solve his various objections and later, while filling the proposal form, you come to know that the person is sick, then in this case, both your time and money are wasted.

Now suppose you inquired about a person's health from his neighbours and after that you explained the Life Insurance Policy to that person. Now that person is ready to buy the Insurance Policy. So before filling the proposal form you must ask your potential customer about his illness.

First Question: Are you currently undergoing treatment for any serious illness? If you are undergoing any treatment, you may get some special benefits from the life insurance company.

Second Question: Have you had to undergo treatment for any serious illness in the last few years? If this has happened to you, you may still get benefits from the insurance company.

Friends, I say from my experience that when a customer is ready to buy an insurance policy and at that time if you ask the above questions, then that customer not only tells about his illness, but also becomes ready to submit the necessary proof. I have always used this technique during my tenure.

If a customer is ill, then we must try to find out about the health of other family members at the same time. So that we can try to sell the insurance policy to another member of the family.

Serious challenge to Insurance Agents from Government Employees

The biggest challenge for a Life Insurance Agent while selling Life Insurance Policies is when he meets a Government Employee to sell his products. In fact, many Government Employees are at home on Medical Leave despite being completely healthy. Often, when such customers are questioned about their health, they also claim themselves to be completely healthy. This is because they are actually healthy, they have taken Medical Leave only to take leave.

As you know, when there is a Death Claim in Life Insurance Policies, the Insurance Company investigates the death. When a Death Claim comes in the Life Insurance Policy of a Government Employee, the Insurance Company also checks his official documents. In this investigation, it is found out that when the Life Insurance Policy was issued on the life of the deceased policyholder, he was on Medical Leave.

Every Government Employee submits proof of his health checkup and a written application to the concerned department to obtain leave. In the leave application, he accepts with his own signature that he is ill. This much proof is sufficient to reject the Insurance Claim. In the Death Claim of such policies, the Life Insurance Agent becomes the scapegoat without any fault.

So our suggestion for you would be that whenever you are talking to a Government Employee regarding a Life Insurance Policy, then definitely check whether he has taken Medical Leave at that time or in the last one year.

Risks of Selling Life Insurance Policies to Remote Customers

Nowadays, many Life Insurance Agents are registering Life Insurance Policies using their Agency Portal. Some agents are using agency portals to sell Life Insurance Policies to remote customers. However, this method can be extremely risky for your agency.

Remote Customer Identification and Risks

For people who are remote from you, you do not know where they went and what they did on the day you registered them. For example, if a person buys medicine at a hospital for treatment of a common illness or signs the entry register of his workplace on the day of registration for a New Insurance, this information can be important. If this happens, the Death Claim in the future may be affected.

Medical Examination and Death Claim Verification

If medical, ECG and other health tests of the prospective customer are mandatory under the policy, then you should conduct these checks carefully. If you sell an Insurance Policy without meeting the customer and a Death Claim occurs, then the Death Claim investigation may reveal that the Insurance Policy was sold without meeting the customer, due to which the Death Claim may be rejected and your agency may be in trouble.

So our suggestion for you would be to not decide to sell an Insurance Policy to a customer sitting far away just by looking at him on a digital device. Rather, to sell the Insurance Policy, either meet that person or call that person to meet you. If Medical Examination is necessary in the Insurance Policy, then get the medical done at the same place where you meet the customer and get the Insurance Policy registered at the nearest office.

In this context, an important advice is that if you want to sell a life insurance policy to a customer who lives abroad, then you should insure him only when he is in India because such customers have a written record of their presence in their passport.

Addiction and Insurance Claim Risk

Many Life Insurance agents ignore the client's habits when selling Insurance Policies, which can pose a risk to the agency. You may know many people who consume drugs. We suggest that you should avoid selling insurance to such people. If you sell an insurance policy to a person who is heavily addicted to drugs and later dies of a disease caused by the addiction, the insurance company may reject the claim.

High-Risk Occupation and Addiction

If you sell insurance to someone who drinks excessively and does risky occupation, the insurance can create problems for you. For example, if a person dies in a road accident and the post-mortem report shows that he was drunk while driving, the chances of insurance claim getting rejected are high.

Process of Filling Proposal Form

Most agents fill the Proposal Form for the client themselves. We suggest that you get the Proposal Form filled by the client and help him/her if possible. If this is not possible, get the form filled by a family member of the client or your staff. The proposal form should be signed by you only and you should fill the Agent Confidential Report Form yourself.

Use and Responsibility of Agency Portal

If you register a life insurance policy using your agency portal, you take all the responsibilities related to the proposal form on yourself. Hence, use the agency portal only when it is absolutely necessary.

Policy Revival and Witness

In cases of policy revival, the agent should witness the revival documents only if he/she knows the exact health condition of the client.

Risks of Duplicate Policy Bonds

The practice of physical policy bonds is going to be discontinued in the future. But for now, be cautious before acting on a customer's request for a duplicate policy bond. The policy bond is the most important document in life insurance policies and many financial and judicial actions can be taken on its basis. If you act for a duplicate policy bond for the wrong person and the fraud case is later exposed, financial recovery can be made from you.

Tips for Life Insurance Agents

You may not have been aware of many matters earlier and due to this some wrong life insurance policies may have been sold by you. So now the question arises that how to protect your agency from such policies. So let us now know about this topic in detail.

Suppose you have sold a life insurance policy to a sick person knowingly or unknowingly. When you sold the insurance policy, you did not know about it at that time, but when the policy was issued, you came to know about the illness. Now it is true that if a death claim comes in such a life insurance policy, then the claim is bound to be rejected. But despite this, you can definitely take some steps to protect your own agency.

1- Pay the premium on time: Make sure that the policyholder keeps paying the premium of his policy on time. So that his policy does not lapse under any circumstances. If the premium of the policy is deposited for two years, then the risk of the agency is eliminated to a large extent.

2- Avoid signing revival forms: If the customer does not deposit the premium of his policy and the policy lapses, do not sign the revival form of such policy yourself.

3- Avoid filling death claim form and agent report: You should not fill any form of death claim of such policies nor sign any form.

Death Claim Investigation and Legal Responsibilities

It is true that death claims of wrong policies get rejected. But if the family members of the deceased policyholder challenge this decision of the insurance company in the consumer forum, then your agency may get into trouble. Now if you fill the proposal form, revival form and death claim form of the policy, then by doing this you can put your own agency in trouble.

Suppose you have filled only the proposal form, then during the inquiry you can put your side like this: The customer did not give any information about his illness while buying the insurance policy. But if you have filled the death claim form yourself, then you will not be able to answer. Because your insurance company will present the necessary evidence, for which you will not have the answer. If this happens, the chances of the agency being closed will be very high.

Disclaimer:

Every customer is important and when he buys a life insurance policy, he trusts you. Therefore, before every sale, make sure to check whether you will be able to receive the death claim if the death claim comes the next day after the policy is issued. If you can do this, then sell the insurance policy and if you are confused, do not sell the insurance even by mistake.

All the information shared here is based on our experiences. We believe that the information given by me may be incomplete and full of errors. Since we feel that the topic covered in this article is very important and related to your financial future, our suggestion to you would be that you do not make our article the basis of any decision. Rather, take expert advice and use your discretion. We will not be responsible in any way for any decision taken by you.

Know in Detail in the Video

To know more about the information given in this article, watch the video given below carefully till the end. If you have any questions in this regard, then write your questions in the comment box of the video.

वीडियो जल्द ही उपलब्ध होगी

02 December 2024

गलत बीमा विक्री की वजह से एजेंसी टर्मिनेशन से कैसे बचें

गलत बीमा विक्री की वजह से एजेंसी टर्मिनेशन से कैसे बचें



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जीवन बीमा का अभिकरण व्यवसाय सिर्फ पॉलिसी बेचने तक सिमित नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है जो आपके पॉलिसीधारकों के परिवार के भविष्य को आर्थिक तौर पर सुरक्षा प्रदान करती है। हालाँकि, यदि इस व्यवसाय में छोटी-छोटी बातों को अनदेखा किया जाता है तो यह आपके एजेंसी के लिए बड़ी समस्या का कारण बन सकता है।

जीवन बीमा बाजार के इस नवीनतम लेख में हम उन सामान्य गलतियों और उनके रोकथाम के उपायों के बारे में चर्चा करेंगे, जिनसे न केवल आप अपने जीवन बीमा की एजेंसी को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि अपने ग्राहकों का भरोसा भी बनाये रख सकते हैं।

सही ग्राहक का चयन

एक जीवन बीमा अभिकर्ता के तौर पर आपकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि जीवन बीमा की पॉलिसी केवल उन्ही लोगों को बेचीं जाये, जो जीवन बीमा पॉलिसी के योग्य हों। प्रत्येक जीवन बीमा कंपनी अपने एजेंटो से यह उम्मीद करती है कि उनका एजेंट ऐसे लोगों को जीवन बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगा, जो पूरी तरह से स्वस्थ होगा।

प्रत्येक जीवन बीमा कंपनी यह विश्वास करती है कि उनका एजेंट, ग्राहकों के मेडिकल रिपोर्ट और प्रासंगिक दस्तावेजों को सही तरीके से सत्यापित करेगा और ग्राहकों के स्वास्थ सम्बंधित गंभीरता को समझते हुए प्रत्येक प्रस्ताव के लिए पारदर्शिता बरतेगा।

जीवन बीमा विक्री में अभिकर्ता की समस्या

मैंने वर्ष 2001 से वर्ष 2018 तक, भारत की नंबर वन जीवन बीमा कंपनी जिसे भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के नाम से जाना जाता है, के साथ जुड़कर जीवन बीमा सलाहकार के तौर पर काम किया है। वर्ष 2015 से, मैं एक ट्रेनर के तौर पर सतत कार्य कर रहा हूँ। एक ट्रेनर के तौर पर मैं कई जीवन बीमा अभिकर्ताओं से बातचीत करता रहता हूँ।

मैं यहाँ पर अपने कुछ अनुभव आपके साथ साझा करना जरुरी समझता हूँ। मेरा यह मानना है कि प्रत्येक जीवन बीमा एजेंट हमेसा यह कोशिस करता है कि वह सही जीवन बीमा पॉलिसी की ही विक्री करें। लेकिन इसके साथ ही, प्रत्येक एजेंट यह भी चाहता है कि वह एमडीआरटी/सीओटी/टीओटी जैसी सफलताओं को प्राप्त करें, वह अपना नाम अपने शाखा कार्यालय के बोर्ड पर पहुँचाना चाहता है और अपने आपको खुद के परिवार के साथ आर्थिक तंगी से बाहर भी निकलना चाहता है।

कोई भी एजेंट यह नहीं चाहता है कि उसके किसी भी ग्राहक कोई समस्या हो और कोई भी ग्राहक उसकी वजह से नाराज हो। एक एजेंट की यह सोच ही, उसके लिए बड़ी समस्या खड़ा कर देती हैं। बीमा पॉलिसी के विक्री के समय एजेंट को लगता है कि अगर वह अपने भावी ग्राहक से उसके नशे से सम्बंधित आदतों के पूछता है या अगर वह ग्राहक से उसकी बीमारी के बारे में पूछता है तो ग्राहक नाराज हो जायेगा या ग्राहक पॉलिसी खरीदने से मना कर देगा।

अदृश्य बिमारियों का आकलन करने में अभिकर्ताओं द्वारा की जाने वाली त्रुटि

सामान्य तौर पर एक बीमार व्यक्ति को देखकर यह पता लग जाता है कि वह व्यक्ति अस्वस्थ है। लेकिन, कई ऐसी गंभीर और जानलेवा ऐसी बीमारिया भी होती है जिससे ग्रसित मरीज को सामान्य तौर पर देखकर यह नहीं बताया जा सकता है कि वह व्यक्ति बीमार चल रहा है। जैसे: डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, शुरूआती कैंसर, क्रॉनिक किडनी डिजीज, थायरॉइड, ऑस्टियोपोरोसिस, लिवर डिजीज, हार्ट डिजीज, एचआईवी, डिप्रेशन, इत्यादि।

उपरोक्त बीमारी से ग्रसित मरीज सामान्य तौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति की तरह ही नज़र आता है। उदाहरण के तौर पर हार्ट डिजीज के मरीज को देखकर आप यह नहीं बता सकते हैं कि वह इतनी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। जबकि वह लम्बे अवधि से अपना ईलाज करवा रहा होता है।

कई जीवन बीमा एजेंट संकोच अथवा अन्य कारणों से ऐसे लोगों से उनकी बीमारी के बारे में पूछताछ नहीं करते हैं और उन्हें स्वस्थ मानकर बीमा पॉलिसी बेच देते हैं। जब ऐसी पॉलिसियों में मृत्यु दावा होता है तो ऐसे मृत्यु दावे को निरस्त कर दिया जाता है। अब यदि मृतक पॉलिसीधारक का परिवार बीमा कंपनी के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाता है तब बीमा अभिकर्ता की जवाबदेही बढ़ जाती है।

इस परिस्थिति में, एजेंट की एजेंसी पर संकट हो सकता है अथवा बीमा दावे की रिकवरी एजेंट से किया जा सकता है। अतः एक ट्रेनर के तौर पर आपके लिए हमारा सुझाव होगा कि प्रत्येक बीमा विक्री में स्वास्थ का सही आकलन करने के बाद ही जीवन बीमा पॉलिसी विक्री करने का निर्णय लें।

अभिकर्ता, ग्राहक के स्वास्थ का सटीक आकलन कैसे करे

मैं यह मानता हूँ कि एक सही जीवन बीमा पॉलिसी की विक्री करने के लिए जीवन बीमा एजेंट को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए आपके लिए हमारा सुझाव होगा कि प्रोस्पेक्टिंग (नए ग्राहक की खोज की प्रक्रिया) के समय ही प्रॉस्पेक्ट (नए ग्राहक) के स्वास्थ एवं आदतों के बारे में जरूर पता लगा लें। इसके लिए आप संभावित ग्राहकों के पड़ोसियों, उनके दोस्तों से इस बारे में जानकारी एकत्र कर सकते हैं।

क्योकि अगर आप एक बीमार व्यक्ति के लिए काम करते है अर्थात पहले बीमा पॉलिसी समझाते हैं, फिर उसके विभिन्न प्रकार के आपत्तियों को हल करते हैं और बाद में प्रोपोजल फॉर्म भरते समय आपको पता चलता है कि वह व्यक्ति बीमार है तो ऐसा होने पर आपका काफी समय और पैसा दोनों बरबाद हो जाता है।

अब मान लीजिये कि आप किसी व्यक्ति के स्वास्थ के बारे में उसके पास पड़ोसियों से पूछताछ की और उसके बाद आपने उस व्यक्ति को जीवन बीमा की पॉलिसी समझाई। अब वह व्यक्ति बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए तैयार हो जाता है। तो प्रपोजल फॉर्म भरने से पहले आपको आपके उस संभावित ग्राहक से उसके बीमारी के बारे में जरूर पूछना चाहिए।

हालाँकि, मुझे यह पता है कि संकोच के कारण आप कुछ झिझक का अनुभव कर सकते हैं। अगर आप ऐसा अनुभव करते हैं तो आपके लिए हम दो प्रश्न दे रहे हैं आप बेझिझक होकर यह प्रश्न पूछ सकते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपके ग्राहक को बुरा भी नहीं लगेगा और वह अपने बीमारी की सटीक जानकारी भी दे देगा।

पहला प्रश्न: क्या आप इस समय किसी गंभीर बीमारी का इलाज करा रहें हैं, यदि आपका कोई ईलाज चल रहा है तो आपको जीवन बीमा कंपनी से कुछ विशेष लाभ मिल सकता है।

दूसरा प्रश्न: क्या पिछले कुछ वर्षो के दौरान आपको किसी गंभीर बीमारी का इलाज कराना पड़ा है, यदि आपके साथ ऐसा हुआ होगा, तब भी आपको बीमा कंपनी से लाभ मिल सकता है।

दोस्तों, मैं अपने अनुभव से कहता हूँ जब ग्राहक बीमा पॉलिसी को खरीदने के लिए तैयार हो जाता है और उस समय अगर आप उपरोक्त प्रश्न पूछते हैं तो वह ग्राहक न केवल अपने रोग के बारे में बताता है, बल्कि जरुरी प्रमाण प्रस्तुत करने को भी तैयार हो जाता है। मैंने अपने कार्यकाल में इस तकनीक का उपयोग हमेसा से करता आया हूँ।

अगर ग्राहक बीमार होता है तो हमें उसी समय यह प्रयास जरूर करना चाहिए कि परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ के बारें में पता लगाएं। ताकि परिवार के किसी दूसरे सदस्य को बीमा पॉलिसी विक्री करने के लिए प्रयास कर सकें।

सरकारी कर्मचारियों से बीमा एजेंट को गंभीर चुनौती

जीवन बीमा पॉलिसी की विक्री के दौरान एक जीवन बीमा एजेंट लिए सबसे बड़ी चुनौती तब होती है, जब वह अपने उत्पादों की विक्री के लिए किसी सरकारी कर्मचारी से मिलते हैं। वास्तव में, कई सरकारी कर्मचारी पूरी तरह से स्वस्थ होने के बावजूद मेडिकल लिव पर छुट्टी लेकर घर पर होते हैं। अक्सर, जब ऐसे ग्राहकों से उनके स्वास्थ के विषय में पूछताछ की जाती है तो वह खुद को पूर्णतया स्वस्थ भी बताते हैं। ऐसा इसलिए, क्योकि वह वास्तव में स्वस्थ होते हैं, उन्होंने तो मेडिकल लिव सिर्फ छुट्टी लेने के लिए लिया होता है।

जैसा कि आप जानते ही हैं, जीवन बीमा पॉलिसियों में मृत्यु दावा होने पर बीमा कंपनी मृत्यु की जाँच करती है। जब किसी सरकारी कर्मचारी के जीवन बीमा पॉलिसी में मृत्यु दावा आता है, तब बीमा कंपनी उसके ऑफिसियल दस्तावेजों की भी जाँच करती है। इस जाँच में यह पता चल जाता है कि मृतक पॉलिसीधारक के जीवन पर जब जीवन बीमा पॉलिसी जारी की गई थी उस समय वह मेडिकल लिव पर था।

प्रत्येक सरकारी कर्मचारी छुट्टी प्राप्त करने के लिए सम्बंधित विभाग में खुद के स्वास्थ जांच का प्रमाण और लिखित एप्लीकेशन जमा करता है। छुट्टी के एप्लीकेशन में वह खुद के हस्ताक्षर के साथ यह स्वीकार करता है कि वह बीमार है। बीमा दावा निरस्त करने के लिए इतना प्रमाण काफी होता है। ऐसी पॉलिसियों के मृत्यु दावे में, जीवन बीमा एजेंट बिना किसी गलती के बलि का बकरा बन जाता है।

अतः आपके लिए हमारा सुझाव होगा कि जब कभी भी आप किसी सरकारी कर्मचारी से जीवन बीमा पॉलिसी के संदर्भ में बातचीत कर रहे हों, तो इस चीज़ की जांच जरूर कर ले कि क्या वह उस समय अथवा पिछले एक वर्ष के दौरान मेडिकल लिव तो नहीं लिया है।

दूरस्थ ग्राहकों को जीवन बीमा पॉलिसी बेचने के जोखिम

आजकल कई जीवन बीमा एजेंट अपने एजेंसी पोर्टल का इस्तेमाल करके जीवन बीमा पॉलिसी का रजिस्ट्रशन कर रहे हैं। कुछ एजेंट दूर बैठे ग्राहकों को जीवन बीमा पॉलिसी बेचने के लिए एजेंसी पोर्टल का उपयोग कर रहे हैं। हालांकि, यह तरीका आपकी एजेंसी के लिए अत्यधिक खतरनाक हो सकता है।

दूरस्थ ग्राहकों की पहचान और जोखिम

ऐसे व्यक्ति जो आपसे दूर हैं, आप यह नहीं जानते हैं कि जिस दिन आपने उनका रजिस्ट्रेशन किया, वे कहाँ-कहाँ गए और क्या-क्या किया। उदाहरण के तौर पर, अगर एक व्यक्ति नए बीमा के लिए पंजीकरण के दिन किसी सामान्य बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में दवा खरीदता है या अपने कार्यस्थल के एंट्री रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, तो यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है। ऐसा होने पर भविष्य में मृत्यु दावा प्रभावित हो सकता है।

मेडिकल जाँच और मृत्यु दावा जाँच

यदि पॉलिसी के अंतर्गत भावी ग्राहक का मेडिकल, ईसीजी और अन्य स्वास्थ्य जांच अनिवार्य हो, तो आपको यह जांच सावधानीपूर्वक करानी चाहिए। अगर आपने ग्राहक को बिना देखे बीमा पॉलिसी बेच दी और मृत्यु दावा हुआ, तो मृत्यु दावे की जाँच में यह पता चल सकता है कि ग्राहक को बिना देखे ही बीमा पॉलिसी बेची गई है, जिससे मृत्यु दावा निरस्त हो सकता है और आपकी एजेंसी संकट में पड़ सकती है।

अतः आपके लिए हमारा सुझाव होगा कि दूर बैठे किसी ग्राहक को सिर्फ डिजिटल डिवाइस देखकर बीमा पॉलिसी बेचने का निर्णय न लें। बल्कि बीमा पॉलिसी बेचने के लिए या तो आप उस व्यक्ति से मिलें या उस व्यक्ति को मिलने के लिए बुलाएँ। अगर बीमा पॉलिसी में मेडिकल जांच जरुरी हो तो मेडिकल उसी जगह कराएं जहा पर आपकी मुलाकात ग्राहक से होती है और नज़दीकी कार्यालय में बीमा पॉलिसी रजिस्टर कराएं।

इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण सलाह यह भी है कि अगर आप किसी ऐसे ग्राहक को जीवन बीमा पॉलिसी बेचना चाहते हैं जो विदेश में रहता है। तब आपको उसका बीमा तभी करना चाहिए जब वह भारत में हो। क्योकि ऐसे ग्राहकों के पासपोर्ट में उनकी उपस्थिति का लिखित रिकॉर्ड होता है।

नशे की लत और बीमा दावा जोखिम

कई जीवन बीमा एजेंट बीमा पॉलिसी बेचते समय ग्राहक की आदतों को अनदेखा कर देते हैं, जो एजेंसी के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। आप कई ऐसे लोगों को जानते होंगे जो नशे का सेवन करते हैं। हमारा सुझाव है कि आपको ऐसे लोगों को बीमा बेचने से बचना चाहिए। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को बीमा पॉलिसी बेचते हैं जो नशे का बहुत आदी है और बाद में नशे की लत के कारण होने वाली बीमारी से मर जाता है, तो बीमा कंपनी दावे को अस्वीकार कर सकती है।

उच्च जोखिम वाला व्यवसाय और नशा

अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को बीमा बेचते हैं जो अत्यधिक शराब पीता है और जोखिम भरा व्यवसाय करता है, तो बीमा आपके लिए समस्याएँ पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि गाड़ी चलाते समय वह नशे में था, तो बीमा दावा खारिज होने की संभावना अधिक होती है।

प्रस्ताव फॉर्म भरने की प्रक्रिया

अधिकांश एजेंट क्लाइंट के लिए प्रस्ताव फॉर्म खुद भरते हैं। हमारा सुझाव है कि यदि संभव हो तो क्लाइंट से प्रस्ताव फॉर्म भरवाएं और उसकी मदद करें। यदि यह संभव नहीं है तो क्लाइंट के किसी पारिवारिक सदस्य या अपने स्टाफ से फॉर्म भरवाएं। प्रस्ताव फॉर्म पर केवल आपके हस्ताक्षर होने चाहिए और एजेंट गोपनीय रिपोर्ट फॉर्म आपको खुद ही भरना चाहिए।

एजेंसी पोर्टल का उपयोग और जिम्मेदारी

यदि आप अपने एजेंसी पोर्टल का उपयोग करके जीवन बीमा पॉलिसी पंजीकृत करते हैं, तो आप प्रस्ताव फॉर्म से संबंधित सभी जिम्मेदारियां खुद पर लेते हैं। इसलिए, एजेंसी पोर्टल का उपयोग केवल तभी करें जब यह बिल्कुल आवश्यक हो।

पॉलिसी का पुनर्चलन और गवाही

पॉलिसी पुनरुद्धार के मामलों में, एजेंट को पुनरुद्धार दस्तावेजों की गवाही तभी देनी चाहिए जब उसे क्लाइंट की सही स्वास्थ्य स्थिति का पता हो।

डुप्लीकेट पॉलिसी बॉन्ड के जोखिम

भविष्य में फिजिकल पॉलिसी बॉन्ड का चलन बंद होने जा रहा है। लेकिन फिलहाल, डुप्लीकेट पॉलिसी बॉन्ड के लिए ग्राहक के अनुरोध पर कार्रवाई करने से पहले सावधानी बरतें। जीवन बीमा पॉलिसियों में पॉलिसी बॉन्ड सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है और इसके आधार पर कई वित्तीय और न्यायिक कार्रवाई की जा सकती है। अगर आप गलत व्यक्ति के लिए डुप्लीकेट पॉलिसी बॉन्ड के लिए कार्रवाई करते हैं और बाद में धोखाधड़ी का मामला उजागर होता है, तो आपसे वित्तीय वसूली की जा सकती है।

जीवन बीमा एजेंट के लिए सुझाव

हो सकता है कि आपको पहले कई मामलों की जानकारी न रही हो और इस वजह से आपके द्वारा कुछ गलत जीवन बीमा पॉलिसियाँ बेची गई हों। तो अब सवाल यह उठता है कि ऐसी पॉलिसियों से अपनी एजेंसी को कैसे सुरक्षित रखें। तो चलिए अब इस विषय पर विस्तार से जानते हैं।

मान लीजिए कि आपने जाने-अनजाने में किसी बीमार व्यक्ति को जीवन बीमा पॉलिसी बेची है। जब आपने बीमा पॉलिसी बेची, उस समय आपको इस बारे में पता नहीं था, लेकिन जब पॉलिसी जारी हुई, तब आपको बीमारी के बारे में पता चला। अब यह सच है कि अगर ऐसी जीवन बीमा पॉलिसी में मृत्यु दावा आता है, तो दावा खारिज होना तय है। लेकिन इसके बावजूद आप अपनी खुद की एजेंसी को सुरक्षित रखने के लिए कुछ कदम जरूर उठा सकते हैं।

1- समय पर प्रीमियम का भुगतान करें: सुनिश्चित करें कि पॉलिसीधारक अपनी पॉलिसी का प्रीमियम समय पर भुगतान करता रहे। ताकि उसकी पॉलिसी किसी भी परिस्थिति में लैप्स न हो। अगर पॉलिसी का प्रीमियम दो साल तक जमा किया जाता है, तो काफी हद तक एजेंसी का जोखिम खत्म हो जाता है।

2- रिवाइवल फॉर्म पर हस्ताक्षर करने से बचें: अगर ग्राहक अपनी पॉलिसी का प्रीमियम जमा नहीं करता है और पॉलिसी लैप्स हो जाती है, तो ऐसी पॉलिसी के रिवाइवल फॉर्म पर खुद हस्ताक्षर न करें।

3- मृत्यु दावा फॉर्म और एजेंट रिपोर्ट भरने से बचें: आपको ऐसी पॉलिसियों के मृत्यु दावे का कोई भी फॉर्म नहीं भरना चाहिए और न ही किसी फॉर्म पर हस्ताक्षर करना चाहिए।

मृत्यु दावे की जांच और कानूनी जिम्मेदारियां

यह सच है कि गलत पॉलिसियों के मृत्यु दावे खारिज हो जाते हैं। लेकिन अगर मृतक पॉलिसीधारक के परिवार के सदस्य बीमा कंपनी के इस फैसले को उपभोक्ता फोरम में चुनौती देते हैं, तो आपकी एजेंसी मुश्किल में पड़ सकती है। अब अगर आप पॉलिसी का प्रस्ताव फॉर्म, रिवाइवल फॉर्म और मृत्यु दावा फॉर्म भरते हैं, तो ऐसा करके आप अपनी ही एजेंसी को मुश्किल में डाल सकते हैं।

मान लीजिए आपने सिर्फ प्रस्ताव फॉर्म भरा है, तो पूछताछ के दौरान आप इस तरह अपना पक्ष रख सकते हैं: बीमा पॉलिसी खरीदते समय ग्राहक ने अपनी बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। लेकिन अगर आपने खुद मृत्यु दावा फॉर्म भरा है, तो आप जवाब नहीं दे पाएंगे। क्योंकि आपकी बीमा कंपनी जरूरी सबूत पेश करेगी, जिसका जवाब आपके पास नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ तो एजेंसी के बंद होने की संभावना बहुत ज़्यादा होगी।

अस्वीकरण:

हर ग्राहक महत्वपूर्ण होता है और जब वह जीवन बीमा पॉलिसी खरीदता है तो वह आप पर भरोसा करता है। इसलिए हर बिक्री से पहले यह ज़रूर देखें कि अगर पॉलिसी जारी होने के अगले दिन मृत्यु दावा आता है तो क्या आप मृत्यु दावा प्राप्त कर पाएँगे। अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो बीमा पॉलिसी बेच दें और अगर आप असमंजस में हैं तो भूल से भी बीमा न बेचें।

यहाँ साझा की गई सभी जानकारी हमारे अनुभवों पर आधारित है। हमारा मानना ​​है कि मेरे द्वारा दी गई जानकारी अधूरी और त्रुटियों से भरी हो सकती है। चूँकि हमें लगता है कि इस लेख में शामिल विषय बहुत महत्वपूर्ण है और आपके वित्तीय भविष्य से जुड़ा है, इसलिए हमारा आपके लिए सुझाव यही होगा कि आप हमारे लेख को किसी भी निर्णय का आधार न बनाएँ। बल्कि विशेषज्ञ की सलाह लें और अपने विवेक का इस्तेमाल करें। आपके द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय के लिए हम किसी भी तरह से ज़िम्मेदार नहीं होंगे।

वीडियो में विस्तार से जाने

इस लेख में दी गई जानकारी और अधिक विस्तार से जानने के लिए नीचे दी गई वीडियो को अंत तक ध्यान से देखिये। अगर इस संदर्भ में आपके कोई सवाल हों तो वीडियो के कमेंट बॉक्स में अपने सवाल लिखें।

वीडियो जल्द ही उपलब्ध होगी

25 November 2024

Death Claims on Non-Paid Premium Policies

Death Claims on Non-Paid Premium Policies



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In Life Insurance, policyholders often wonder whether their Death Claim will be accepted or not. In reality, one of the primary reasons for Death Claim Rejection is non-payment of policy premium on time.

In this article by Jeevan Bima Bazaar, we will explain when and how a death claim can be accepted based on premium payments, and in what situations it may be rejected. In many cases, policyholders assume that a death claim will not be paid if the premium remains unpaid. However, under certain circumstances—such as after the grace period has expired—a death claim may still be payable.

This article provides detailed insights into these crucial aspects. The information here is based on the rules of the Life Insurance Corporation of India (LIC). If your policy is with another life insurance company and your claim is denied, you may be able to appeal in court using similar grounds.

First Check in Death Claim Process

When a death claim is filed for a life insurance policy, the first step is to check the policy’s FUP (First Unpaid Premium). To do this, examine the last premium receipt paid by the policyholder. If the FUP date on the last premium receipt falls after the policyholder's date of death, it indicates that all premiums for this policy have been paid in full, making it eligible for a death claim.

In LIC Premium Receipts, the FUP is shown as the Next Premium Due Date. If the policyholder has multiple life insurance policies, you should check the next premium due date (FUP) in the last premium receipt of each policy to confirm which policies are active.

What to Do in the Absence of the Final Receipt

If the Premium Receipt for a policy is unavailable, you can find the FUP by visiting the branch office of the insurance company and providing the policy number. This way, you can obtain FUP information even without the receipt. This process is essential for expediting the approval of the death claim.

Grace Period in Life Insurance Policies

Grace period plays an important role in life insurance policies, especially when the policyholder's life insurance policy premium is not deposited at the time of his death. Now if you want to understand what is the important role of grace period at the time of death claim in life insurance policies, then it will be very important for you to understand what is grace period in life insurance policies?

In fact, in almost all life insurance policies, in case of not being able to deposit the premium by the due date, policyholders are given some extra time to pay the premium. This extra time given to policyholders to pay the premium is called grace period for life insurance policies.

Time Limit of Grace Period in Insurance Policies

Generally, life insurance policies, whose premium is deposited by monthly method, get the benefit of 15 days grace period. Example: Suppose a policy whose premium is deposited on a monthly basis. The date of its last premium deposit was 28 October 2024. Now suppose that the policyholder does not deposit the premium of this policy for some reason. So this policy will get the benefit of a grace period of 15 days after 28 October. In which this policy will provide the benefit of death claim.

But if there is a policy whose premium is deposited quarterly, half-yearly or yearly, then in such policies, the benefit of grace period is available for an additional 30 days from the date of last premium deposit.

Grace Period and Death Claim

If a policyholder dies during the grace period, then his life insurance policy will be considered eligible for death claim. Let us understand this with an example

Suppose that late Shri Nikhil Kumar Gupta ji had to deposit the last premium of his life insurance policy on 28 October 2024. Unfortunately, he dies in a tragic road accident on 18 November 2024 without paying the premium.

Now if Mr. Gupta had chosen the monthly option to pay the premium of his life insurance policy, then the grace period of his policy will end on 12 November 2024 itself. In such a situation, his policy will be ineligible for death claim. But if he had chosen the quarterly, half-yearly or yearly option to pay the premium of his life insurance policy, then he will get a grace period till 27 November 2024, due to which his policy will be considered eligible for death claim.

Things to Remember Regarding Grace Period

  • The grace period rules may be different in different life insurance policies of different life insurance companies.
  • Single premium paid life insurance policies do not have a grace period, because all the premiums of these policies are paid together at the time of issuance of the policy.
  • Before reaching any decision regarding death claim, do check the rules regarding grace period for your insurance policy.

Special Benefits offered by LIC

All the rules related to Grace Period apply equally to all Life Insurance Companies in India. However, the information being presented further in this article is specifically about India's number one Life Insurance Company, Life Insurance Corporation of India (LIC).

If you are an agent or customer of any other Life Insurance Company, then you must find out whether your Life Insurance Company gives these benefits or not and if your Life Insurance Company gives these benefits, then whether this benefit is applicable to your Life Insurance Policy.

Social Objective of LIC

Life Insurance Corporation of India (LIC) is an undertaking of the Government of India. We feel that the Government of India tries to strengthen the future of Indian families financially by giving some convenience in various schemes of the corporation. This is the reason why the corporation is successful in providing the following benefits to its policyholders.

Benefits Given by LIC on Death Claim

Apart from the rules mentioned in the policies of LIC, the corporation provides some additional concessions in the context of Death Claim, which are as follows-

Death Claim Concession for Policies in-force for two years

If you have taken a LIC policy (except term and some special plans) and you have paid the premium of your policy for two consecutive years, but due to some reason you are not able to pay the next premium of your policy, then also your policy will remain eligible for Death Claim for 90 days from the date of First Unpaid Premium (FUP).

Understand with an Example:

Suppose that Mr. Omkar Gupta purchased an insurance policy from Life Insurance Corporation of India on 28 October 2021. Unfortunately, he passed away on 15 January 2024. However, it is being told by the nominee that he has deposited all the premiums of his policy on time, but the last premium has not been deposited.

Now the question is whether his policy is eligible for Death Claim?

To know the answer to this question, we first have to understand what were the premium dues of Mr. Gupta's insurance policy before 15 January 2024 and for how many years the premium of this policy has been deposited.

All Premium Dues before Death

  • First Premium Due of Policy - Oct 28, 2021 (when the policy was issued)
  • Second Premium Due of Policy - Apr 28, 2022
  • Third Premium Due of Policy - Oct 28, 2022
  • Fourth Premium Due of Policy - Apr 28, 2023
  • Fifth Premium Due of Policy - Oct 28, 2023 (this due has not been deposited)

Note: On checking the above, it is found that just before 15 January 2024, the premium due of the policy will be 28 October 2023. If the last due of the policy has not been deposited as per the nominee, it means that Mr. Gupta has not deposited the due of this policy on 28 October 2023. That is, the First Unpaid Premium (FUP) of Mr. Gupta's policy will be 28 October 2023.

Checking the Eligibility for Death Claim

Since Mr. Gupta's policy was on half-yearly method, he will get the benefit of 30 days Grace Period from the First Unpaid Premium in his Insurance Policy, which has expired on 27 November 2023. On this basis, this policy will become ineligible for Death Claim.

But, this policy has been purchased from Life Insurance Corporation of India and the corporation gives concession to its policyholders for 90 days after depositing the premium of the policy continuously for two years. On checking on this basis, it is found that Mr. Gupta has deposited the premium of his policy for two years, due to which he will get the benefit of concession in his policy till 27 January 2024. Therefore, this policy of his will be considered eligible for Death Claim.

Death Claim Benefit for Policies in-force for three years

Life Insurance Corporation of India policies whose premium has been paid for three consecutive years. After this, if the premium is not paid for any reason, then the corporation gives a rebate of 180 days from the First Unpaid Premium (FUP) for the Death Claim in such policies. However, at the time of payment of Death Claim, the amount of outstanding premium will be deducted along with late fee.

Death Claim Benefit for Policies in force for five years

Life Insurance Corporation of India policies whose premium has been paid for five consecutive years. After this, if the premium of that policy is not paid for any reason, then the corporation gives a rebate of next twelve months from the First Unpaid Premium (FUP) for the Death Claim for such policies. Here also, the amount of outstanding premium is deducted from the payment of death claim along with late fee.

Rules for Special Insurance Policies

Nowadays, almost all Life Insurance Companies offer special types of Life Insurance Plans for customers. The specialty of these plans is that after paying premium for a certain period, if the policyholder is unable to pay the premium for any reason, then such plans still provide the facility of long term auto cover.

For example, Life Insurance Corporation of India had a plan named Bima Gold. The rule of this plan was that if the policyholder pays the premium of his policy for two years and due to any reason he is unable to pay the premium of his policy, then this policy will remain eligible for death claim for the next two years.

Evaluation of Premium Status in Death Claim

I am confident that now you can assess whether the Life Insurance Policy is eligible for Death Claim or not on the basis of Premium in reference to Death Claim in any Life Insurance Policy.

If you are a Life Insurance Agent, then for Death Claim for any Life Insurance Policy, first of all you must confirm on the basis of premium whether that Life Insurance Policy is eligible for Death Claim or not. Briefly know how to evaluate the premium status for Death Claim

  1. Check the First Unpaid Premium of the Policy: In case of death claim in life insurance policies, first check the FUP of the policy of the deceased policyholder and assess whether the policy was in force condition at the time of the policyholder's death or not.
  2. Review of Grace Period: If the policy was not in force condition at the time of the policyholder's death, then check whether the policyholder's death occurred during the grace period.
  3. Assess the Premium Payment Period:
    • If the policy has also crossed the Grace Period at the time of the policyholder's death, then check for how many years the policy premium has been deposited.
    • Now, know whether the concerned Life Insurance Company provides any other facility for Death Claim as mentioned above in the context of Life Insurance Corporation of India.
    • If the concerned Life Insurance Company offers any additional facility for Death Claim, then assess whether the Life Insurance Policy of the deceased policyholder meets those conditions of the company.
  4. Review of Special Provisions of the Policy: If the Life Insurance Policy of the deceased policyholder does not meet any of the above conditions, then find out whether any special rules related to Death Claim (eg, additional two years of auto cover) apply in the policy terms.

Determining Death Claim Eligibility Based on Premium

If the Life Insurance Policy of the deceased policyholder meets any of the 4 conditions mentioned above, then you can consider such policy eligible for Death Claim based on Premium. In such a situation, as a Life Insurance Agent, you should advise the nominee of the policy or the claimant to submit a formal Death Claim Intimation to the concerned Life Insurance Company as soon as possible.

Conclusion

It is very important to understand the premium related conditions before submitting a Death Claim Intimation for a Life Insurance Policy. Especially if you are a Life Insurance Agent. Based on this assessment, you can better guide the nominee of the policy or the claimant regarding the payment possibilities. By doing this, you create a better professional image and you also avoid unnecessary disputes.

Know in Detail in the Video

To know more about the information given in this article, watch the video given below carefully till the end. If you have any questions in this regard, then write your questions in the comment box of the video.

वीडियो जल्द ही उपलब्ध होगी

23 November 2024

प्रीमियम जमा न होने के बावजूद मृत्यु दावा का लाभ कैसे लें

प्रीमियम जमा न होने के बावजूद मृत्यु दावा का लाभ कैसे लें



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जीवन बीमा में पॉलिसीधारकों के मन में अक्सर यह सवाल रहता है कि उनका मृत्यु दावा स्वीकार होगा या नहीं। दरअसल, मृत्यु दावा खारिज होने का एक मुख्य कारण समय पर पॉलिसी प्रीमियम का भुगतान न करना भी होता है।

जीवन बीमा बाजार के इस लेख में हम जानेंगे कि प्रीमियम के आधार पर मृत्यु दावा कब और कैसे स्वीकार किया जा सकता है और किन स्थितियों में इसे खारिज किया जा सकता है। कई मामलों में पॉलिसीधारकों को लगता है कि प्रीमियम जमा न करने पर मृत्यु दावे का भुगतान नहीं किया जाएगा। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में, जैसे कि ग्रेस पीरियड बीत जाने के बाद भी पॉलिसी से मृत्यु दावे का भुगतान किया जा सकता है।

इस लेख में हम इन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से समझेंगे। यह लेख भारतीय जीवन बीमा निगम के नियमों के आधार पर जानकारी प्रदान करता है। अगर आपकी पॉलिसी किसी दूसरी जीवन बीमा कंपनी की है और आपका दावा खारिज हो जाता है, तो आप इन नियमों के आधार पर न्यायलय में अपनी अपील प्रस्तुत कर सकते हैं।

मृत्यु दावा प्रक्रिया में प्रथम जांच

यदि किसी जीवन बीमा पॉलिसी में मृत्यु दावा हो जाता है, तो सबसे पहले उस पालिसी की एफयूपी (FUP - First Unpaid Premium) की जाँच जरूर करना चाहिए। ऐसा करने के लिए आपको पॉलिसीधारक द्वारा जमा की गई आखरी प्रीमियम रसीद को देखना चाहिए। यदि आखरी प्रीमियम रसीद पर एफयूपी की तारीख पॉलिसीधारक के मृत्यु की तारीख के बाद है, तो आपको मान लेना चाहिए कि इस पॉलिसी की सभी प्रीमियम पूर्ण रूपेण जमा है और यह पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए योग्य है।

एलआईसी (LIC) की प्रीमियम रसीदों में एफयूपी को अगली प्रीमियम देय तिथि (Next Premium Due Date) के रूप में दिखाया जाता है। यदि पॉलिसीधारक ने अपने जीवन काल में एक से अधिक जीवन बीमा पॉलिसी खरीदी है, तो प्रत्येक पॉलिसी की आखरी प्रीमियम रसीद में नेक्स्ट प्रीमियम ड्यू अर्थात एफयूपी की जाँच करना चाहिए। ऐसा करने से आपको यह पता चल जायेगा कि कौन-कौन सी पॉलिसियां इन-फोर्स कंडीशन में है।

आखरी रसीद की अनुपस्थिति में क्या करें

यदि किसी पॉलिसी की प्रीमियम रसीद उपलब्ध न हो, तो सम्बंधित बीमा कंपनी के शाखा कार्यालय में जाकर पॉलिसी नम्बर के माध्यम से उस पॉलिसी का एफयूपी पता किया जा सकता है। इस प्रकार, आप बिना रसीद के भी किसी पॉलिसी के एफयूपी के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह प्रक्रिया मृत्यु दावा को तेजी से स्वीकृत कराने के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है।

जीवन बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड

जीवन बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, खास तौर से यह तब अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब पॉलिसीधारक के मृत्यु के समय, उसके जीवन बीमा पॉलिसी की प्रीमियम जमा नहीं होती है। अब अगर आप यह समझना चाहते हैं कि जीवन बीमा की पॉलिसियों में मृत्यु दावे के समय ग्रेस पीरियड की अहम भूमिका क्या होती है, तो आपको यह समझना बेहद जरुरी होगा कि जीवन बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड क्या होता है?

वास्तव में, लगभग सभी जीवन बीमा पॉलिसियों में प्रीमियम जमा करने की तिथि तक प्रीमियम जमा न कर पाने की स्थिति में, पॉलिसीधारकों को प्रीमियम भुगतान करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय दिया जाता है। प्रीमियम भुगतान करने के लिए पॉलिसीधारकों को मिलने वाले इस अतिरिक्त समय को ही जीवन बीमा पॉलिसियों के लिए ग्रेस पीरियड कहा जाता है।

बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड की समय सीमा

आमतौर पर ऐसी जीवन बीमा पॉलिसियां, जिसकी प्रीमियम मासिक विधि से जमा की जाती है, के लिए 15 दिनों का ग्रेस पीरियड लाभ प्राप्त होता है। उदाहरण: मान लीजिये कि एक ऐसी पॉलिसी जिसकी प्रीमियम मासिक विधि से जमा की जाती है। इसके आखरी प्रीमियम जमा करने की तिथि 28 अक्टूबर 2024 थी। अब मान लीजिये कि पॉलिसीधारक किसी कारण से अपने इस पॉलिसी की प्रीमियम जमा नहीं करता है। तो इस पॉलिसी में 28 अक्टूबर के बाद 15 दिनों की ग्रेस पीरियड का लाभ मिलेगा। जिसमे यह पॉलिसी मृत्यु दावे का लाभ प्रदान करेगी।

लेकिन अगर कोई ऐसी पॉलिसी है जिसकी प्रीमियम तिमाही, छमाही अथवा वार्षिक विधि से जमा की जाती है, तो ऐसी पॉलिसियों में आखरी प्रीमियम जमा की तिथि से अतिरिक्त 30 दिनों तक ग्रेस पीरियड का लाभ प्राप्त होता है।

ग्रेस पीरियड एवं मृत्यु दावा

अगर किसी पॉलिसीधारक की मृत्यु ग्रेस पीरियड के दौरान होती है तो उसकी जीवन बीमा पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए पात्र मानी जाएगी। आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं

मान लीजिये कि स्वर्गीय श्री निखिल कुमार गुप्ता जी को उनके जीवन बीमा पॉलिसी की आखरी प्रीमियम 28 अक्टूबर 2024 को जमा करनी थी। दुर्भाग्य से, बिना प्रीमियम जमा किये ही उनकी मृत्यु 18 नवंबर 2024 को एक दुःखद सड़क हादसे में हो जाती है।

अब अगर श्री गुप्ता जी ने अपने जीवन बीमा पॉलिसी की प्रीमियम जमा करने का मासिक विकल्प चयन किये होंगे, तो उनके पॉलिसी का ग्रेस पीरियड 12 नवंबर 2024 को ही समाप्त हो जायेगा। ऐसे में उनकी पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए अयोग्य हो जाएगी। लेकिन अगर उन्होंने अपने जीवन बीमा पॉलिसी की प्रीमियम जमा करने के लिए तिमाही, छमाही अथवा वार्षिक विकल्प का चयन किया होगा, तब उन्हें 27 नवंबर 2024 तक के लिए ग्रेस पीरियड मिलेगा, जिसके कारण उनकी पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए योग्य मानी जाएगी।

ग्रेस पीरियड के संदर्भ में याद रखने योग्य बातें

  • अलग-अलग जीवन बीमा कंपनियों की अलग-अलग जीवन बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड के नियम अलग-अलग हो सकते हैं।
  • एकल प्रीमियम भुगतान की जाने वाली जीवन बीमा पॉलिसियों में ग्रेस पीरियड नहीं होता है, क्योकि इन पॉलिसियों की सभी प्रीमियम का भुगतान पॉलिसी जारी होते समय ही एक साथ कर कर दिया जाता है।
  • मृत्यु दावे के संदर्भ में किसी भी निर्णय तक पहुंचने से पहले अपने बीमा पॉलिसी के लिए ग्रेस पीरियड से सम्बंधित नियमों की जांच अवश्य कर लें।

एलआईसी द्वारा दिए जाने वाला विशेष लाभ

ग्रेस पीरियड से सम्बंधित सभी नियम भारत में सभी जीवन बीमा कंपनियों पर समान रूप से लागू होते है। हालाँकि अभी इस लेख में जो जानकारी आगे प्रस्तुत किया जा रहा है, वह विशेष रूप से भारत की नंबर वन जीवन बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के बारे में है।

अगर आप किसी अन्य जीवन बीमा कंपनी के एजेंट अथवा ग्राहक हैं, तो आपको यह जरूर पता कर लेना चाहिए कि आपकी जीवन बीमा कंपनी इन लाभों को देती है या नहीं और अगर आपकी जीवन बीमा कंपनी इन लाभों को देती है तो क्या यह लाभ आपके जीवन बीमा पॉलिसी के लागू होता है।

एलआईसी का सामाजिक उदेश्य

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), भारत सरकार का उपक्रम है। हमें लगता है कि भारत सरकार, निगम की विभिन्न योजनओं में कुछ सहूलियत देकर भारतीय परिवारों के भविष्य को आर्थिक रूप से मज़बूत करने का प्रयास करती है। यही कारण है कि निगम आगे दिए हुए लाभों को अपने पोलिसीधारको तक पंहुचा पाने में सफल हो पाती है।

मृत्यु दावे पर एलआईसी द्वारा दिए जाने वाला लाभ

एलआईसी की पॉलिसियों में वर्णित नियमों के आलावा, निगम मृत्यु दावे के संदर्भ में कुछ अतिरिक्त रियायत प्रदान करती है, जो कुछ इस प्रकार है-

दो वर्षो तक इन्फोर्स पॉलिसियों के लिए मृत्यु दावा रियायत

यदि आपने एलआईसी की पॉलिसी (टर्म एवं कुछ विशेष प्लान को छोड़कर) ली है और आपने लगतार दो वर्षो तक अपने पॉलिसी की प्रीमियम का भुगतान किया है, लेकिन किसी कारण वश आप अपने पॉलिसी अगली प्रीमियम नहीं भर पाते हैं, तब भी आपकी पॉलिसी फर्स्ट अनपेड प्रीमियम (FUP) की तिथि से 90 दिनों तक मृत्यु दावे के लिए योग्य बनी रहेगी।

उदाहरण से समझे:

मान लीजिये कि श्री ओमकार गुप्ता जी ने दिनांक 28 अक्टूबर 2021 को भारतीय जीवन बीमा निगम से एक बीमा पॉलिसी खरीदी। दुर्भाग्यवश, 15 जनवरी 2024 को उनका निधन हो गया। हालाँकि, नॉमिनी के द्वारा बताया जा रहा है कि उन्होंने अपने पॉलिसी की सभी प्रीमियम समय पर जमा की है, लेकिन आखरी प्रीमियम जमा नहीं किया गया है।

अब सवाल यह है कि क्या उनकी यह पॉलिसी मृत्यु दावे के योग्य है?

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि 15 जनवरी 2024 से पहले श्री गुप्ता जी के बीमा पॉलिसी की प्रीमियम ड्यू कौन-कौन सी थी और उनकी इस पॉलिसी की प्रीमियम कितने वर्षो तक जमा हुई है।

मृत्यु के पूर्व की सभी प्रीमियम ड्यू-

  • पॉलिसी की प्रथम प्रीमियम ड्यू - 28 अक्टूबर 2021 (पॉलिसी जब जारी हुई थी)
  • पॉलिसी की दूसरी प्रीमियम ड्यू - 28 अप्रैल 2022
  • पॉलिसी की तीसरी प्रीमियम ड्यू - 28 अक्टूबर 2022
  • पॉलिसी की चौथी प्रीमियम ड्यू - 28 अप्रैल 2023
  • पॉलिसी की पांचवी प्रीमियम ड्यू - 28 अक्टूबर 2023 (यह ड्यू जमा नहीं हुई है)

नोट: उपरोक्त को जाँच करने पर पता चलता है कि 15 जनवरी 2024 से ठीक पहले, पॉलिसी की प्रीमियम ड्यू 28 अक्टूबर 2023 होगी। नॉमिनी के अनुसार पॉलिसी की आखरी ड्यू जमा नहीं हुई है तो इसका अर्थ यह है कि श्री गुप्ता जी ने 28 अक्टूबर 2023 में अपने इस पॉलिसी ड्यू जमा नहीं हुई है। यानि कि श्री गुप्ता जी के पॉलिसी फर्स्ट अनपेड प्रीमियम (FUP) 28 अक्टूबर 2023 होगी।

मृत्यु दावे की योग्यता की जाँच

चुकी श्री गुप्ता जी की पॉलिसी छमाही विधि से थी, इसलिए उन्हें उनकी बीमा पॉलिसी में फर्स्ट अनपेड प्रीमियम से 30 दिनों का ग्रेस पीरियड का लाभ मिलेगा, जो कि 27 नवंबर 2023 को समाप्त हो चूका है। इस आधार पर यह पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए अयोग्य हो जाएगी।

लेकिन, यह पॉलिसी भारतीय जीवन बीमा निगम से खरीदी गई है और निगम अपने पोलिसीधारको को, पॉलिसी की प्रीमियम निरंतर दो वर्षो तक जमा करने के बाद 90 दिनों के लिए अपनी ओर से रियायत देता है। इस आधार पर जाँच करने पर पता चलता है कि श्री गुप्ता जी ने अपने पॉलिसी की दो वर्षो की प्रीमियम जमा की है, इस वजह से उन्हें उनकी पॉलिसी में 27 जनवरी 2024 तक रियायत का लाभ मिल जायेगा। अतः उनकी यह पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए योग्य मानी जाएगी।

तीन वर्षो तक इन्फोर्स पॉलिसियों के लिए मृत्यु दावा लाभ

भारतीय जीवन बीमा निगम की ऐसी पॉलिसियां जिसकी प्रीमियम लगातार तीन वर्षो तक जमा हो चुकी है। इसके बाद अगर किसी कारण से उसकी प्रीमियम जमा नहीं होती है तो निगम ऐसी पॉलिसियों में मृत्यु दावे के लिए फर्स्ट अनपेड प्रीमियम (FUP) से 180 दिनों की रियायत देता है। हालाँकि, मृत्यु दावे के भुगतान के समय बकाया प्रीमियम की राशि लेट फीस के साथ काट ली जाएगी।

पांच वर्षो तक इन्फोर्स पॉलिसियों के लिए मृत्यु दावा लाभ

भारतीय जीवन बीमा निगम की ऐसी पॉलिसियां जिसकी प्रीमियम लगता पांच वर्षो तक जमा हो चुकी है। इसके बाद अगर किसी कारण से उस पॉलिसी की प्रीमियम जमा नहीं होती है, तो निगम ऐसी पॉलिसियों के लिए मृत्यु दावे के लिए फर्स्ट अनपेड प्रीमियम (FUP) से अगले बारह महीनो की रियायत देता है। यहाँ भी बकाया प्रीमियम की राशि लेट फीस के साथ मृत्यु दावे के भुगतान से काट ली जाती है।

विशेष बीमा पॉलिसियों के लिए नियम

आजकल लगभग सभी जीवन बीमा कंपनियां ग्राहकों के लिए खास तरह की जीवन बीमा योजनाए पेशकश करती हैं। इन योजनाओं की विशेषता यह होती है कि एक निश्चित अवधि तक प्रीमियम जमा होने के बाद, अगर पॉलिसीधारक अपने पॉलिसी की प्रीमियम किसी कारण से जमा नहीं कर पाता है, तो ऐसी योजनायें तब भी लम्बी अवधि का ऑटो कवर की सुविधा प्रदान करती हैं।

उदाहरण के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम की एक योजना थी जिसका नाम बीमा गोल्ड था। इस योजना का नियम था कि अगर पॉलिसीधारक अपने पॉलिसी की प्रीमियम दो वर्षो तक जमा कर देता है और किसी कारण से वह अपने पॉलिसी की प्रीमियम जमा नहीं कर पाता है, तो यह पॉलिसी अगले दो वर्षो तक मृत्यु दावे के लिए योग्य बनी रहेगी।

मृत्यु दावे में प्रीमियम स्थिति का मूल्यांकन

मुझे यह पूरा भरोषा है कि अब आप किसी भी जीवन बीमा पॉलिसी में मृत्यु दावे के संदर्भ प्रीमियम के आधार पर यह आकलन कर सकते हैं कि जीवन बीमा पॉलिसी मृत्यु दावे के योग्य है या नहीं।

अगर आप एक जीवन बीमा अभिकर्ता हैं तो किसी भी जीवन बीमा पॉलिसी के लिए मृत्यु दावे के लिए सबसे पहले आपको प्रीमियम के आधार पर यह जरूर कन्फर्म कर लेना चाहिए कि वह जीवन बीमा पॉलिसी मृत्यु दावे के लिए योग्य है या नहीं। संक्षेप में जाने कि मृत्यु दावे के लिए प्रीमियम स्थिति का मूल्यांकन कैसे करे

  1. पॉलिसी के फर्स्ट अनपेड प्रीमियम की जांच: जीवन बीमा पॉलिसियों में मृत्यु दावा होने पर सबसे पहले मृतक पॉलिसीधारक के पॉलिसी के एफयूपी की जाँच करें और आकलन करें कि पॉलिसीधारक के मृत्यु के समय पॉलिसी इन्फोर्स कंडीशन में थी या नहीं।
  2. ग्रेस पीरियड की समीक्षा: यदि पॉलिसीधारक के मृत्यु के समय पॉलिसी इन्फोर्स कंडीशन में नहीं थी, तो यह जाँच करें कि क्या पॉलिसीधारक की मृत्यु के ग्रेस पीरियड के दौरान हुई है।
  3. प्रीमियम भुगतान अवधि का आकलन:
    • यदि पॉलिसीधारक के मृत्यु के समय पॉलिसी ग्रेस पीरियड की अवधि भी पार कर चुकी हो, तो यह जाँच करें कि पॉलिसी की प्रीमियम कितने वर्षो तक जमा हुई है।
    • अब जाने कि क्या सम्बंधित जीवन बीमा कंपनी मृत्यु दावे के लिए क्या कोई अन्य सहूलियत प्रदान करती है जैसा कि उपरोक्त में भारतीय जीवन बीमा निगम के संदर्भ में बताया गया है।
    • अगर सम्बंधित जीवन बीमा कंपनी मृत्यु दावे के लिए कोई अतिरिक्त सहूलियत प्रदान करती है तब यह गणना करें कि क्या मृतक पॉलिसीधारक की जीवन बीमा पॉलिसी कंपनी के उन शर्तो को पूरा करती है।
  4. पॉलिसी के विशेष प्रावधानों की समीक्षा: यदि मृतक पॉलिसीधारक की जीवन बीमा पॉलिसी उपरोक्त किसी भी शर्त को पूरा नहीं करती है तो यह पता लगाए कि पॉलिसी के नियमो में मृत्यु दावे से सम्बंधित कोई विशेष नियम (जैसे, अतिरिक्त दो वर्षों का ऑटो कवर) लागू होते हैं।

प्रीमियम के आधार पर मृत्यु दावा योग्यता का निर्धारण

अगर मृतक पॉलिसीधारक की जीवन बीमा पॉलिसी, उपरोक्त में बताये गए 4 शर्तो में से किसी भी एक शर्त को पूर्ण करती है, तो आप ऐसी पॉलिसी को प्रीमियम के आधार पर मृत्यु दावे के लिए योग्य मान सकते हैं। ऐसी स्थिति में, एक जीवन बीमा अभिकर्ता के रूप में आपको चाहिए कि आप पॉलिसी के नॉमिनी को अथवा दावेदार को सम्बंधित जीवन बीमा कंपनी में जल्द से जल्द औपचारिक मृत्यु दावा सुचना प्रस्तुत करने की सलाह देनी चाहिए।

निष्कर्ष

जीवन बीमा पॉलिसी के लिए मृत्यु दावा सुचना प्रस्तुत करने से पूर्व प्रीमियम सम्बंधित शर्तो को समझना बेहद जरूर होता है। खास तौर से तब जब आप एक जीवन बीमा अभिकर्ता हों। इस आकलन के आधार पर आप पॉलिसी के नॉमिनी को अथवा दावेदार को भुगतान से सम्बंधित संभावनाओं के लिए बेहतर मार्गदर्शन कर सकते हैं। ऐसा करने से आपकी बेहतर प्रोफेशनल छवि का निर्माण होता है और आप अनावश्यक विवादों से भी बचे रहते हैं।

वीडियो में विस्तार से जाने

इस लेख में दी गई जानकारी और अधिक विस्तार से जानने के लिए नीचे दी गई वीडियो को अंत तक ध्यान से देखिये। अगर इस संदर्भ में आपके कोई सवाल हों तो वीडियो के कमेंट बॉक्स में अपने सवाल लिखें।

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