ऋषि के सात्विक भोजन की कहानी  

भारतीय हिंदू धर्म में मनुष्य के तीन प्रकार की प्रवृत्तियों का विवरण मिलता है। जिसका संबंध मनुष्य के भोजन और उसके गुणों के आधार पर निर्धारित होता है। मनुष्य की यह तीन प्रवृत्तियां राजसी प्रवृत्ति, सात्विक प्रवृत्ति और तामसी प्रवृत्ति कही जाती है। आजकी इस कहानी में एक ऐसी ही घटना का जिक्र किया जा रहा है। हमें पूरा भरोसा है यह घटना आप को प्रभावित करेगी। 

एक बार की बात है, एक ऋषि तीर्थ यात्रा पूरा करने के उद्देश्य से चारों धामों की यात्रा करने के लिए निकल पड़े। ऐसा करते करते उनका काफी समय व्यतीत हो गया। यात्रा के दौरान उनको बहुत तेज भूख की अनुभूति हुई। थोड़ी ही दूरी पर एक गांव दिखाई दे रहा था। ऋषि ने मन ही मन फैसला किया कि उस गांव में पहुंचकर भोजन किया जाएगा। 



जब ऋषि उस गांव में पहुंचे, एक आदमी अपने पत्नी और बच्चों को बहुत बुरी तरह से मार रहा था। ऋषि ने दुखी मन से आसपास के लोगों से इसका कारण पूछा। लोगों ने ऋषि को बताया कि यह आदमी जब भी मांस मदिरा का सेवन कर लेता है। इसी प्रकार से अपने परिवार के सदस्यों को और गांव के दूसरों दूसरे लोगों के साथ मारपीट और अभद्रता करता है। 

ऋषि ने गांव में भोजन किया और फिर अपनी यात्रा पर निकल पड़े। दूसरे दिन सुबह जब स्नान का समय हुआ। ऋषि ने गंगा में स्नान करने का निर्णय लिया। जब ऋषि गंगा नदी में स्नान कर रहे थे। उनका ध्यान एक दूसरे व्यक्ति पर पड़ा, जो कुछ दूरी पर उसी गंगा नदी में और गंगा के उसी घाट पर स्नान कर रहा था। 

ऋषि उस व्यक्ति को पहचान गए। यह वही व्यक्ति था, जो पिछले दिन अपने पत्नी और बच्चों के साथ मारपीट कर रहा था। ऋषि उस व्यक्ति के पास पहुंचे और उन्होंने उससे कहा हमें जानकारी मिली है कि आप मांस मदिरा का सेवन करते हो और उसके बाद अपने संबंधियों के साथ गलत व्यवहार करते हो। 

यदि तुम ऐसा ही करते रहोगे, तो तुम्हे इसका बहुत बड़ा पाप भोगना पड़ेगा। ऋषि की ऐसी बातों को सुनकर, उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैं जानता हूँ कि यह सब कुछ गलत है। यही कारण है कि मैं प्रतिदिन गंगा मां के नदी में स्नान करता हूँ। ताकि मेरे द्वारा किया गया सभी पाप धुल जाए। 

ऋषि ने उस व्यक्ति की ऐसी बातों को सुनकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया। लेकिन काफी सोच में पड़ गए। ऋषि सोचने लगे कि मां गंगा इतनी पापियों का पाप प्रतिदिन धोती हैं। उस पाप के कारण मां गंगा के अंदर बहुत अधिक पाप इकट्ठा हो जाता होगा। 

उस पाप के विषय में जानकारी लेने के लिए, उस ऋषि ने भगवान की तपस्या करने का फैसला लिया। ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान ने उसको दर्शन दिया। 

तब ऋषि ने भगवान से पूछा- "प्रभु, मां गंगा प्रतिदिन इतने पापियों का पाप धोती हैं। तो यह सारे पाप गंगा नदी में कहां पर इकट्ठा होते हैं।"

भगवान ने कहा- इसका उत्तर तो गंगा ही दे सकती हैं। 

अब ऋषि और भगवान दोनों लोग गंगा के पास पहुंचे और उन्होंने गंगा से पूछा कि आप प्रतिदिन इतने लोगों के पाप धोती हो, तो वह पाप आपके पास कहां इकट्ठा होता है?

गंगा ने उत्तर दिया- मैं यह सारे पाप अपने पास नहीं रखती हूं। मैं यह सारे पाप समुद्र में डाल देती हूँ। 

ऐसा सुनकर दोनों लोग समुद्र के पास पहुंचे और समुद्र से पूछा गंगा नदी से जो पापा आपको मिलता है, वह आपके अंदर कहां इकट्ठा होता है?

समुद्र ने उत्तर दिया- प्रभु मेरे अंदर जो भी पाप इकट्ठा होते हैं मैं उनको अपने पास नहीं रखता हूँ। मैं यह सारे पाप वाष्प बनाकर बादल को अर्पित कर देता हूँ। 

अब ऋषि और भगवान दोनों लोग बादल के पास पहुंचते हैं और बादल से पूछते हैं कि समुद्र से और गंगा से जो पाप आपको मिलता है। आप उस पाप को कहां इकट्ठा करते हो। 

बादल उत्तर देता है- प्रभु, मैं भी यह सारे पाप अपने पास इकट्ठा नहीं करता हूँ। मैं यह सारे बाप बरसात के दिनों में जमीन को अर्पित कर देता हूँ। 

अब दोनों लोग धरती के पास पहुंचते हैं और अपना प्रश्न धरती से पूछते हैं। 

धरती उत्तर देती है- भगवन, यह सारे पाप जो पानी के रूप में हमें प्राप्त होते हैं। उसको मैं खेतों में अर्पित कर देती हूँ। 

यह सारे पाप, तामसी भोजन के रूप में मनुष्य पुनः भक्षण करता है। 

अर्थात कहने का मतलब यह है हम जैसा भोजन करते हैं। हमारी प्रवृत्ति भी वैसी ही हो जाती है। अतः हमेशा हमें सात्विक भोजन ही करना चाहिए। साधारण शब्दों में कहा जाए तो सत्य और धर्म के अनुसार कमाई गई आय से किया गया भोजन मनुष्य के जीवन को खुशियों से भर देता है। 

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धन्यवाद