Love Story in Hindi, Hindi Story
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कॉलेज में प्यार किसी और से परन्तु विवाह की और से 


घर वालो के राजी होने के बावजूद संजना ने किया विवाह से इंकार 

बात उन दिनों की है, जब एक लड़की अपने स्नातक के आखरी वर्षो में अपनी पढाई कर रही थी। सुन्दर काले बाल, चेहरा इतना मासूम की किसी भी इंसान को प्यार हो जाये। नज़रो में माता पिता के संस्कारो की छवि, सुंदरता में चार चाँद लगाती और इतने मासूमियत से भरी चाल की, कवि अपनी कविता में उसका वर्णन करने में खुद को छोटा महसूस करने लगे। 

कॉलेज के आखरी वर्ष चल रहे थे। अपना पूरा ध्यान अपनी शिक्षा को समर्पित की हुई यह किशोरी जिसका नाम संजना था, जब कॉलेज में जाती थी रास्ते में कुछ लड़के उसे परेशान करने से बाज़ नहीं आते थे। लेकिन, उन्ही में एक लड़का जिसका नाम रवि था। उसका मन, संजना के प्यार में पागल हो गया था। 

रवि की गिनती कॉलेज के मेधावी छात्रों में होती थी। पढाई लिखाई में, विद्यालय के अच्छे बच्चो में उसकी गिनती होती थी। खेल कुद में भी विद्यालय का नाम ऊँचा करने में उसका महत्वपूर्ण योगदान रहता था। यही वजह थी कि उस कालेज के सभी प्राचार्य उसकी तारीफ किया करते थे। शायद उसकी सुंदरता और विजय पाने के यह गुण ऐसा था कि उस कॉलेज की हर लड़की आपस में रवि की बात किया करती थी। 

रवि के मन में संजना राज करने लगी। अब ऐसा कोई दिन नहीं होता था। जब रवि संजना को न देखे और उसे चैन पड़ जाये। यदि रविवार का दिन हो या फिर किसी कारण से कॉलेज बंद हो, तो रवि अपनी मोटर साइकल से संजना के घर के आस पास घूमने जरूर चला जाता था। कि काश उसे उसके सपनो की रानी, एक बार दिख भर जाये। 

पहले तो संजना को इस बात का एहसास नहीं हुआ। लेकिन, जब सहेलिया आपस में संजना का मजाक बनाने लगी, तब उसने भी इस बात को सही पाया। धीरे-धीरे कब यह हंसी मज़ाक प्यार में बदल गया पता ही नहीं चला।
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और प्यार हो भी तो क्यों नहीं, संजना ने अपने सपनो में जिस प्रकार के राजकुमार की छवि बना रखी थी। रवि में हर वह गुण मौजूद थे। 

समय व्यतीत होता गया और अब परिवार में संजना के लिए वर की तलाश शुरू हो चुकी थी। ताकि स्नातक की परीक्षा पूर्ण कर लेने के बाद, परिवार संजना का विवाह, योग्य वर से कर सके। जब इसकी जानकारी संजना को हुई, संजना ने अपने मन की बात को अपनी माँ को बता दिया। 

रवि एक होनहार लड़का था और सभी को पुरा भरोषा था, कि वह अपनी लाइफ में एक दिन जरूर सफलता की उचाईयो को पायेगा। एक ही जात और धर्म होने के कारण घर के सदस्यों ने भी इस रिश्ते को स्वीकार्य कर लिया। 

दोनों परिवार ने मँगनी की रश्म को पूरा किया। अब दोनों जोड़े भविष्य के सुन्दर सपने सजाये साथ में कालेज जाने लगे। संजना की सहेलियाँ भी, अब उसकी खिचाई करने में परहेज नहीं करती थी। धीरे धीरे समय बीतता गया और कॉलेज के परीक्षा का आखरी पेपर देने के बाद, जब दोनों बाहर निकले, भावी सॉस ससुर के आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा, संजना ने अपने होने वाले जीवन साथी के सामने व्यक्त की। 

संजना स्वम उसके घर आना चाहती है, ऐसा जानकर रवि बहुत खुश हुआ और हज़ारो सपने एक साथ उसके मन में उठने लगे। रवि ने संजना से कहा शाम को मैं तुम्हारे घर आ आऊंगा और फिर दोनों अपने अपने घर चले गए। 

संजना अपने घर पहुंची और अपनी ईच्छा को अपनी माँ से व्यक्त किया। माँ को थोड़ा अच्छा नहीं लगा, क्योकि विवाह से पहले लड़के के घर जाना माँ को अच्छा नहीं लग रहा था। समाज और परिवार के बंधनो के विषय में माँ ने अपनी लाड़ली को समझाया। परन्तु जब संजना ने माँ से बताया कि वह रवि से वादा कर चुकी है तो माँ मान गई क्योकि उस माँ को अपने संस्कारो पर पूरा भरोसा था। 

शाम में सज सवर कर रवि, संजना को लेने उसके घर आ गया। कुछ ही समय में दोनों रवि के घर में आ गए। होने वाली बहु पहली बार अपने ससुराल आई थी, रवि के माँ के पैर तो अब जमींन पर पड़ ही नहीं रहे थे। कुछ समय बातचित करने के बाद संजना ने चाय और पकौड़े बनाये और उस जगह लेकर आ गई जहां सभी बैठे थे। 

लेकिन अभी वहाँ पर सिर्फ रवि बैठा हुआ था। संजना ने चाय और पकौड़े टेबल पर रखा और अपने भावी सास को बुलाने के लिए जैसे ही मुड़ी रवि उसका हाथ पकड़ लिया। संजना चौक गई और बोली, "थोड़ा इंतज़ार अच्छा है कुछ समय में हम साथ साथ होंगे। माँ को बुला लेती हूँ सभी साथ बैठकर चाय और पकौड़े खाते है।" 

रवि ने मना किया, "क्यों, अभी किसी को बुलाती हो, परिवार, समाज और हम दोनों ने भी अब एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने का तय कर लिया है, फिर अकेले साथ बैठने में हर्ज़ ही क्या है।"

संजना ने मना किया और अपने होने वाले पति से, उसके माता-पिता को बुलाने के लिए कहा। रवि ने इंकार कर दिया। छोडो जाने दो यार कह कर बात को टाल दिया। कई बार बोलने पर भी जब रवि टस से मस नहीं हुआ तो संजना स्वम जाकर बुला लाई। 

चाय पीते हुए अचानक माँ ने रवि से कहा- बेटा संजना को उसके घर छोड़ने जाना तो मेरे लिए दर्द की दवा लेते आना। पता नहीं क्यों मेरे सर में कुछ समय से तेज़ दर्द हो रहा है। 

रवि माँ की इस बात को सुनकर नाराज़ हो गया और बोला- माँ तुम्हे हमेसा कुछ न कुछ काम होता है, मैं इतना खाली नहीं हूँ। संजना को उसके घर छोड़ने के बाद मुझे दोस्तों के साथ पार्टी में जाना है। 

माँ ने कहा- बेटा, पार्टी में चले जाना, मैंने कब रोका है लेकिन दवा दे देकर चले जाना। 

परन्तु बेटे ने (रवि ने) साफ मना कर दिया। इन सारी बातो पर संजना का पुरा ध्यान था और संजना को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या प्रतिक्रिया करे। खैर कुछ समय पश्चात, रवि अपने गाड़ी की चाभी लेने, अपने कमरे में गया, तभी संजना ने अपने पर्स से सर दर्द की दवा निकालकर माँ को दिया और बोली, "माँ, आप इसे खा लो, आज मेरे ताऊ जी को सर में दर्द था। तो सुबह उनके लिए मैंने यह दवा ली थी और इसकी कुछ दवाईया अभी भी मेरे पास बची थी। 

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थोड़ी ही देर में, रवि और संजना दोनों रवि की गाड़ी में बैठकर संजना के घर की ओर निकल पड़े। अभी कुछ दूर ही दोनों चले होंगे कि संजना ने मूवी देखने की इच्छा जाहिर की। रवि तुरंत मान गया और सिनेमा हाल की ओर अपनी गाड़ी दौड़ा दिया। सिनेमा हाल तक जाने के बाद, संजना ने फिल्म देखने से यह कहकर मना कर दिया कि घर वाले परेशान हो जायेगे और वह दूसरे दिन फिल्म देखने जायेगे। 

खैर, जैसे ही संजना अपने घर पहुंची। उसने अपनी माँ से कहा, माँ मैं रवि से शादी नहीं कर सकती। क्योकि जो लड़का अपने माता पिता की कद्र नहीं कर सकता। वह अपनी पत्नी का क्या सम्मान करेगा और सारी घटना का जिक्र उसने अपनी माँ से किया। काफी समझाने के बाद भी वह शादी के लिए नहीं मानी। 

कुछ समय बाद उसका विवाह दूसरे लड़के से कर दिया गया। धीरे धीरे समय बीतता गया और उसने दो बेटो को जन्म दिया। धीरे धीरे वह बच्चे बड़े हो गए और एक दिन उन बच्चो ने अपने माता पिता को तीर्थयात्रा कराने का निश्चय किया। 

संजना के पति व्यस्त थे। इस वजह से ऐन मौके पर उन्होंने पत्नी और बच्चो के साथ जाने से मना कर दिया। चुकी प्रोग्राम काफी लम्बे समय से चल रहा था, इसलिए प्रोग्राम को स्थगित करने की बजाय, सभी ने यात्रा को आरम्भ करने का ही निश्चय लिया और तय समय पर संजना अपने दोनों नवयुवक बच्चो के साथ तीर्थयात्रा हेतु निकल गई। 

रास्ते में वह जिस बस से सफर कर रहे थे, उसी बस में एक असहाय बुजुर्ग भी सफर कर रहा था। बच्चो को उस बुजुर्ग पर दया आ गई। उन्होंने बुजुर्ग से युहीं  पूछा- आप कौन हो और आप कहाँ जा रहे हो ? बुजुर्ग दुःखी मन से अपनी आप बीती उन बच्चो को बताने लगा- बेटा, मेरा एक बेटा है और उसका कपडे का बहुत बड़ा व्यापार है। लेकिन, उसने दो वर्ष पहले मुझे अपने घर से निकाल दिया है। अब मैं असहाय हूँ, एक धार्मिक संस्था द्वारा सहायता पाकर मैं यह तीर्थयात्रा कर रहा हूँ। 

कुछ समय पश्चात्, बस एक ढाबे पर रुकी, बच्चो को लगा शायद बूढ़ा काफी समय से भूखा है। तो उन्होंने उसे खाना खिलाने के लिए ढाबे वाले को बोला और उस खाने का पैसा चूका दिया। वह बूढ़ा भी उन बच्चो को ढेर सारा आशीर्वाद देने लगा। 

ईधर बूढी संजना, काफी देर से अपने बच्चो को अपने पास न पाकर, वह भी बस से उतर गई। इधर उधर उसकी निगाहे अपने बच्चो को देख रही थी, तभी उसकी नज़र उस बुजुर्ग पर पड़ी। जिसे उसके बच्चो ने भोजन कराने के लिए बैठाया था। पैसा चुकाने के लिए ढाबे वाले के पास चले गए थे। 

बुजुर्ग को देखकर, पहले तो संजना को बड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन, जब संजना ने उसे पहचान लिया। तब वह उसके पास गई और बोली, क्या आप रवि हो। बुजुर्ग ने हां कहते हुए जब संजना की ओर देखा। तो अपनी दशा और उसके अचानक दस्तक की वजह से समझ नहीं पाया कि वह क्या करे। 

लेकिन बिना कुछ कहे ही संजना को अंदाज़ा हो गया था, कि रवि की वर्तमान स्तिथि क्या चल रही है। उसने रवि का सम्मान रखते हुए सिर्फ इतना ही जानना चाहा कि क्या, आज उसके परिवार में उसका साथ देने वाला कोई नहीं है। 

क्योकि एक पल को उसे ऐसा महसूस हुआ कि कही उसी के वियोग में रवि की यह दशा हो गई, क्योकि एक पल में रवि की दशा के लिए उसने खुद को ही दोषी मान लिया था। 

रवि ने कहा- मेरा एक बेटा है और कपडे का बहुत बड़ा व्यापारी है। लेकिन, अब वह किन्ही कारणों से उनके साथ नहीं रहता। 

संजना ने कहा- रवि, मैंने शादी से इसीलिए इंकार कर दिया था क्योकि मैं जानती थी जो व्यक्ति अपने माता पिता का ध्यान नहीं रख सकता वह अपनी पत्नी का ध्यान कैसे रखेगा। माँ के सर दर्द होने पर उसे दवा देने से ज्यादा दोस्तों की पार्टी अहमियत रख सकती है। जो अपनी प्रेमिका को खुश करने के लिए तीन घंटे की फिल्म देख सकता है लेकिन अपने माँ के सर दर्द की दवा के लिए 15 मिनट का समय नहीं दे सकता, उसके बच्चे कैसे होंगे। मुझे यह एहसास हो गया था। 

रवि, मेरे बच्चे मुझे तीर्थयात्रा करा रहे है, क्योकि मैंने अपने माता पिता का सम्मान किया अपने सास ससुर की सेवा की।  

(इसके आगे अभी वह कुछ और बातचीत कर पाते तभी संजना के बच्चे वहां आ गए और बाते वही रुक गई)

बच्चो ने कहा- माँ हम कब से ढूढ़ रहे है, आप अपनी सीट पर नहीं थी। हम परेशान हो गए थे। चलो तुम भी कुछ खा लो। 

और सभी दूसरी जगह बैठकर भोजन करने लगे। बच्चो ने बुजुर्ग की तकलीफ अपनी माँ को बताया और उन्होंने उनकी सहायता की यह जानकारी भी अपनी माँ को दिए। माँ ने कहा- बेटा आप लोगो ने बहुत अच्छा कार्य किया है। 

एक बार फिर संजना और रवि की निगाहे मिली और कई अधूरे प्रश्न, कई सवाल तो कुछ पश्याताप के साथ सफर आरम्भ हुआ। 

दोस्तों मुझे यकीन है इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके मन में भी कुछ अधूरे प्रश्न होंगे, कुछ गलतियों को आप भी पाएंगे, तो कुछ सफल प्रयाश भी यह कहानी आपको देगी। 

संजना गलत थी या सही प्रश्न यह नहीं है। बल्कि प्रश्न तो यह है कि क्या आप भी किसी संजना के लिए, अपने माँ को दवा देना भूल तो नहीं गए है।  प्रश्न तो यह है कि क्या हमारा मन, दोस्तों के पार्टी में इतना मस्त तो नहीं हो गया है कि पिता के टूटे चश्मे को सही कराने का समय हमें नहीं मिल रहा है। जिसका खर्च भी महज उतना है जितने का एक समोसा या चाय मिलता है। 

माता-पिता निःस्वार्थ आजीवन अपने खुशियों को कुर्बान करते हुए ठीक उसी प्रकार आपके लिए समर्पित थे। जैसे आज आप अपने बच्चो के लिए है। यदि आप ऐसे माता पिता के लिए वफ़ा नहीं कर सकते। तो फिर आप यह कैसे उम्मीद कर सकते है कि आपके अजीज आपके साथ वफ़ा करेंगे। 

यदि निःस्वार्थ भाव से आपका गुरु आपके लिए समर्पित होता है आपकी सफलता की कामना करता है। आपके लिए रात दिन एक कर देता है यदि नाराज़ भी होता है और उसकी नाराज़गी में भी आपका ही हित होता है तो ऐसे गुरु को आप सम्मान नहीं दे सकते। तो आपके अपनी औलाद आपका सम्मान करेगी। ऐसी कल्पना भी आप कैसे कर सकते है। 

दोस्त, यदि कोई आपसे बिना कोई मोल लिए, आपकी सहायता करता है और उस सहायता के बदले आपको लाभ होता है। यदि आप ऐसे लोगो के हितो को ध्यान नहीं रखते। तो निश्चित ही आपको भी ऐसा दिन जरूर देखना पड़ेगा। जब आपका ध्यान रखने वाले आपसे अपना मुख मोड़ लेंगे। 

क्योकि विज्ञानं कहता है- क्रिया प्रतिक्रिया का नियम हर जगह कार्य करता है और आध्यात्म कहता है- आप जैसा बोवोगे वैसा ही एक न एक दिन जरूर काटोगे। 

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मानव समाज के जीवन में विचारो (Thoughts) का महत्वपूर्ण योगदान होता है। सकारात्मक विचारो (Positive Thoughts) वाला मनुष्य न केवल अपने जीवन में बल्कि दुसरो के जीवन में बेहतर परिवर्तन की क्षमता रखता है। वही पर नकारात्मक विचारो (Negative Thoughts) वाला मनुष्य न केवल अपने जीवन को कठिन बनाता है बल्कि दुसरो के लिए भी समस्या की वजह बन जाता है। हर विचार ऐसे बीज की तरह होता है, जो मनुष्य के नजरिये और व्यवहार रूपी पेड़ का निर्माण करता है।
कहानियो (Stories) का मानव जीवन पर अद्भुत असर होता है। शायद यही वजह है कि भारतीय समाज में बचपन से ही उनके बुजुर्गो के द्वारा कहानियाँ सुनाई जाती रही है। हम आपके लिए अपने वेबसाइट पर बेहतरीन हिंदी कहानियों (Hindi Story) का संग्रह प्रस्तुत करने जा रहे है।
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Thoughts have an important contribution to the life of human society. A person with positive thoughts has the ability to change not only in his life but also in the life of others. On the same, a person with negative thoughts not only makes his life difficult but also becomes a cause of the problem for others. Every thought is like a seed, which forms a tree of human attitudes and behavior.
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