07 May 2020

Employer Employees Insurance Scheme Kya hai




EMPLOYER EMPLOYEES INSURANCE SCHEME KYA HAI

नियोक्ता कर्मचारी योजना क्या है-

जब एक नियोक्ता (employer) अपने सभी कर्मचारियों के जीवन पर जीवन बीमा पॉलिसी लेता है। ऐसे योजनाओ को नियोक्ता कर्मचारी योजना कहा जाता है। ऐसे योजनाओ की प्रीमियम नियोक्ता स्वम भी भर सकता है अथवा कर्मचारियों के द्वारा भी भरा जा सकता है। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना जीवन बीमा के कोई विशेष प्रोडक्ट नहीं होते है। बल्कि नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच जीवन बीमा सुरक्षा को लेकर एक विशेष व्यवस्था होती है।
Employer Employee Insurance Scheme in Hindi

क्या नियोक्ता को अपने कर्मचारियों के लिए जीवन बीमा लेने का अधिकार होता है-

प्यारे अभिकर्ता साथियों, जैसा कि आप जानते है कि जीवन बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए बीमा हित (Insurable Intrest) का होना आवश्यक होता है। तो आपके मन में यह प्रश्न पैदा हो सकता है कि एक नियोक्ता का अपने कर्मचारी के जीवन पर बीमा हित क्या है? क्या एक नियोक्ता को अपने कर्मचारी के जीवन पर जीवन बीमा पॉलिसी खरीदने का कानूनन अधिकार है?

तो इसका उत्तर है- हाँ। क्योकि एक नियोक्ता का आर्थिक हित उसके कर्मचारियों के जीवन में निहित होता है। अर्थात एक कर्मचारी अपने जीवन काल में अपने नियोक्ता के लिए कार्य करता रहता है। यदि कर्मचारी की मृत्यु किसी कारण से उसके रिटायरमेंट से पहले हो जाती है। तो ऐसी स्तिथि में उस नियोक्ता को आर्थिक क्षति उठाना पड़ता है। 

अतः एक नियोक्ता का उसके कर्मचारियों के लिए बीमा हित होता है। इस कारण उसे अपने कर्मचारियों के जीवन पर बीमा पॉलिसी लेने का अधिकार होता है। 

नियोक्ता किसे कहते है-

एक नियोक्ता वह प्राधिकरण है जो कर्मचारियों को उनके श्रम के लिए नियुक्त करता है और उसके फल स्वरूप भुगतान करता है। नियोक्ता एक व्यक्ति हो सकता है या कई लोगो का प्रतिनिधित्व करने वाली कोई कंपनी हो सकती है।

नियोक्ता और उनके कर्मचारियों के बीच, नियोक्ता वह पार्टी होता है जो आमतौर पर रोजगार की शर्तो को परिभाषित करता है। कर्मचारियों को उनके द्वारा किये गए किसी भी श्रम के लिए सहमत मुआवजा देने के लिए बाध्य होगा।

एम्प्लॉई अर्थात कर्मचारी किसे कहेगे-

जीवन बीमा को ध्यान में रखते हुए किसी नियोक्ता के यहाँ कार्य करने वाले व्यक्ति को जिसे लिखित शर्तो के आधार पर वेतन के आधार पर किसी निश्चित कार्य को पूरा करने के लिए रखा गया हो। उसे एम्प्लॉई अथवा कर्मचारी कहा जायेगा। नियोक्ता कर्मचारी योजना के तहत कर्मचारी को निम्नलिखित शर्तो को पूरा करना आवश्यक होगा। 
  1. कर्मचारी उसी व्यक्ति को माना जायेगा जिसे वेतन प्राप्त होता हो। 
  2. एक कर्मचारी को उसके नियोक्ता द्वारा वेतन पर्ची अथवा फॉर्म 16 प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। 
  3. एक कर्मचारी को उसके बैंक खाते का स्टेटमेंट प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। जिसमे उसके वेतन का पैसा क्रेडिट होता हो। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना कौन ले सकता है-

नियोक्ता कर्मचारी योजना के लिए तीन प्रमुख इकाईया होती है। प्रथम इकाई के रूप में नियोक्ता होता है। दूसरी इकाई के रूप में वह कर्मचारी होते है जिनके जीवन पर बीमा किया जाता है और तीसरी इकाई के रूप में वह बीमा कम्पनी होती है। जिसके जरिये बीमा पॉलिसी जारी की जाती है। 

जैसा कि नियोक्ता कर्मचारी योजना एक व्यवस्था है और इसके नाम से ही जाहिर होता है कि कोई भी नियोक्ता अपने कर्मचारियों के जीवन पर बीमा करा सकता है। 

मूल रूप से एक नियोक्ता कहीं भी हो सकता है। कोई भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी, साझेदारी, प्रोपराइटरशिप, ट्रस्ट, सोसाइटी नियोक्ता के रूप में अपने कर्मचारियों हेतु नियोक्ता कर्मचारी योजना करा सकता है। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना के अंतर्गत कौन से प्रोडक्ट आते है-

चुकी नियोक्ता कर्मचारी योजना एक विशेष व्यवस्था होती है। ताकि किसी विशेष नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों के जीवन को आर्थिक सुरक्षा प्रदान किया जा सके। अतः इसमें किसी विशेष प्रोडक्ट का होना आवश्यक नहीं है। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना के अंतर्गत किसी भी जीवन बीमा प्रोडक्ट को दिया जा सकता है। सिर्फ बच्चो के प्रोडक्ट्स और पेंशन से सम्बंधित योजनाओ को नहीं दिया जा सकता है।

क्या डायरेक्टर भी एम्प्लॉई माना जाता है-

किसी नियोक्ता हेतु उसका डायरेक्टर एक एम्प्लॉई हो भी सकता है और नहीं भी। इसे यदि साधारण भाषा में स्पष्ट किया जाये तो आप इसे इस प्रकार समझ सकते है कि यदि कोई डारयेक्टर अपने सेवा हेतु वेतन लेता है। जो की U/S 192 के तहत वर्णित किया जाता है। तो उसे उचित वेतन माना जायेगा। तो ऐसे कार्यरत डारेक्टर को उस नियोक्ता का पूर्ण रूप से सही कर्मचारी माना जायेगा। जबकि कोई ऐसा डायरेक्टर जो की अपनी सेवाओं के लिए कंसल्टेंसी फीस प्राप्त करता है। जो कि U/S- 194J के तहत दर्शया जाता है। ऐसे मामलो में डायरेक्टर को उस संगठन अथवा नियोक्ता का कर्मचारी नहीं माना जायेगा। 
(मैं यहाँ पर जीवन बीमा हेतु स्पष्ट कर रहा हूँ।)
Employer Employee Insurance Scheme in Hindi

एक नियोक्ता प्रीमियम का अतिरिक्त भार क्यों लेगा-

यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। यदि एक अभिकर्ता के रूप में आप इस बात को समझ लेते है तो फिर नियोक्ता कर्मचारी योजना का विक्रय करना आपके लिए बेहद आसान हो जायेगा। चुकी अधिकतम अभिकर्ताओं को इसकी जानकारी नहीं होती है। इसलिए ऐसे अभिकर्ता इस ओर प्रयास भी नहीं करते है। 

एक नियोक्ता अपने कर्मचारियों के जीवन पर जीवन बीमा पॉलिसी लेने को तैयार हो जायेगा। इसके पीछे दो महत्वपूर्ण वजह हो सकती है। इसे हम बारी बारी से समझते है। 

1 कर्मचारी लम्बे समय तक ऑर्गनाइजेशन से जुड़ा रहेगा- नियोक्ता कर्मचारी योजना को लेने के पीछे यह एक सबसे बड़ा कारण होता है। एक कर्मचारी अपने ऑर्गनाइजेशन से तब लम्बे अवधि तक जुड़कर कार्य करता रहेगा। जब उस कर्मचारी को अपने ऑर्गनाइजेशन में अपना हित दिखाई देगा। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना में नियोक्ता अपने कर्मचारियों के जीवन पर जीवन बीमा हेतु प्रस्ताव करता है। कर्मचारियों के जीवन पर जीवन बीमा पॉलिसी जारी की जाती है। प्रीमियम नियोक्ता द्वारा भरा जाता है। 

चुकी नियोक्ता कर्मचारी योजना का उदेश्य नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा का लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है। फिर भी, यदि कर्मचारी अपने नियोक्ता को छोड़कर चला जाता है तो ऐसी स्तिथि में नियोक्ता के बड़े आर्थिक नुकसान की सम्भावना बनी रहती है। अतः नियोक्ता के हितो को ध्यान में रखते हुए इस योजना को तीन से चार वर्ष हेतु असाइन करा दिया जाता है। 

इसका असर क्या होता है- जब एक कर्मचारी को यह पता होता है कि उसके जीवन पर उसके नियोक्ता द्वारा जीवन बीमा पॉलिसी कराई गई है। तो ऐसा कर्मचारी यह महसूस करता है कि हमारा नियोक्ता हमारे हितो का ध्यान रखता है, हमारे नियोक्ता को हमारे परिवार के हितो की चिंता है। 

ऐसा कर्मचारी जिसे यह पता होता है कि उसके जीवन पर उसके नियोक्ता द्वारा जीवन बीमा पॉलिसी कराइ गई है। यदि वह अपने नियोक्ता के साथ जुड़ा रहता है तो अगले तीन से चार वर्षो के बाद उस जीवन बीमा पॉलिसी पर उसका अधिकार हो जायेगा। तो यह अधिकतम सम्भावना बन जाती है कि कर्मचारी उस तीन से चार वर्षो तक अपने नियोक्ता के साथ जुड़ा रहे। 

नियोक्ता की सुरक्षा- चुकी नियोक्ता कर्मचारी योजना में की गई पॉलिसी को नियोक्ता के लिए असाइन कर दिया जाता है। अतः यदि कर्मचारी असाइन अवधि से पूर्व अपने नियोक्ता को छोड़ कर चला जाता है तो नियोक्ता को उस पॉलिसी के  सभी भुगतान (पॉलिसी के नियमो के अनुसार) प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है। 

इस प्रकार जब कोई नियोक्ता अपने कर्मचारियों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था को अपनाता है तो उसका कर्मचारी उसके साथ एक लम्बी अवधि तक जुड़कर कार्य करता रहेगा। इसकी काफी हद तक सम्भावनाये बढ़ जाती है। 

2 टैक्स लाभ हेतु- नियोक्ता कर्मचारी योजना में नियोक्ता अपने कर्मचारियों के जीवन पर जीवन बीमा हेतु प्रस्ताव करने की दूसरी प्रमुख वजह उसके कंपनी को होने वाला टैक्स लाभ होता है। जब एक नियोक्ता इस व्यवस्था के तहत अपने कर्मचारियों के लिए प्रीमियम जमा करता है। तो जमा की गई यह प्रीमियम आयकर की धारा 37(1) के तहत आता है। 

सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ डायरेक्ट टैक्स के सर्कुलर संख्या 762 के अनुसार आयकर की धारा 37(1) के अंतर्गत, एक नियोक्ता इस तरह के प्रीमियम भुगतान की व्यवस्था के तहत क्लेम कर सकता है। इस प्रकार की प्रीमियम का भुगतान उस नियोक्ता के लिए एक आवश्यक लागत माना जाता है। जिसे की नियोक्ता के लाभांश में घटा दिया जाता है। जिसके परिणाम स्वरुप उस नियोक्ता को टैक्स में बड़ी राहत मिल जाती है।

नियोक्ता कर्मचारी योजना के प्रकार-

नियोक्ता कर्मचारी योजना को दो भागो में बांटा जा सकता है। मैं आपके लिए दोनों को ही बताने जा रहा हूँ और आखरी में एक अभिकर्ता के रूप में आपके लिए क्या बेहतर हो सकता है अपने विचार रखने का प्रयास करूँगा। 
1: स्कीम A- नियोक्ता कर्मचारी योजना में स्कीम A के अंतर्गत कर्मचारी को केवल बीमा सुरक्षा का लाभ प्राप्त होता है। कर्मचारी के जीवन पर जीवन बीमा हेतु उसका नियोक्ता प्रस्तावक भी होता है और उस जीवन बीमा पॉलिसी का मालिक भी होता है। ऐसे योजनाओ में प्रीमियम जमा करने का दाइत्व भी मालिक का ही होता है। उस पॉलिसी का लाभार्थी भी नियोक्ता ही होता है। 

2: स्कीम B- नियोक्ता कर्मचारी योजना में स्कीम B के अंतर्गत कर्मचारी को बीमा सुरक्षा के साथ साथ उसके जीवन पर जारी किये गए पॉलिसी के सभी लाभ भी प्राप्त होते है। उस पॉलिसी का प्रस्तावक नियोक्ता भी हो सकता है और कर्मचारी भी। परन्तु प्रीमियम जमा करने का दाईत्व एक निश्चित अवधि हेतु नियोक्ता का होता है। ऐसी योजनाओ में नियोक्ता और कर्मचारी की सहमति से कुछ समायोजन भी किया जा सकता है। 

हमारी राय- एक अभिकर्ता के रूप में आपको ऑप्शन B के लिए बढ़ावा देना चाहिए। हमारी ऐसी राय के पीछे दो कारण है। पहला यह कि इसमें कर्मचारियों का हित ज्यादा निहित है और आपके ऐसे कार्यो से समाज के भलाई का कार्य होगा। दूसरा यह कि नम्बर ऑफ़ लाइफ की गणना का लाभ एक अभिकर्ता के रूप में आपको ज्यादा होगा। 

नियोक्ता कर्मचारी योजना में असाइनमेंट की भूमिका-

यदि आप ध्यान देंगे तो आप पाएंगे कि इस व्यवस्था के तहत की गई पॉलिसी से एक नियोक्ता को उस जीवन बीमा पॉलिसी से कोई विशेष लाभ होता नहीं दिखाई देता है। एक नियोक्ता जब कभी अपने किसी विशेष कार्य की पूर्ति के लिए किसी कर्मचारी को नियुक्त करता है। तो उस कर्मचारी की योग्यता अपने कार्य के प्रति विशेष हो इसके लिए नियोक्ता को कई बार ट्रेनिंग इत्यादि कराने में बड़े खर्च उठाने पड़ते है। 

अब यदि वह कर्मचारी अपने नियोक्ता को छोड़कर चला जाता है। तो ऐसे में नियोक्ता को नए कर्मचारी मिलना और उसे अपने कार्य के प्रति योग्य बनाने में समय और पैसे दोनों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। जिस कारण एक नियोक्ता कभी भी ऐसा नहीं चाहता कि उसका कर्मचारी उसे छोड़कर जाये। 

यही वजह होती है कि एक नियोक्ता अपने कर्मचारियों के लिए नियोक्ता कर्मचारी योजना की व्यवस्था को लेने के लिए प्रेरित होता है। लेकिन यहाँ भी एक नियोक्ता के लिए बड़ी समस्या होती है कि यदि उसका कर्मचारी पहले ही उसके ऑर्गनाइजेशन को छोड़कर चला जाये तो उसे इस व्यवस्था के तहत भी नुकसान हो जायेगा। 

एक नियोक्ता को उसके कर्मचारी छोड़कर न जाये इसके लिए उस पालिसी का असाइनमेंट कर दिया जाता है। यह असाइनमेंट दो प्रकार से हो सकता है। 
  1. परिस्तिथि के आधार पर- इस प्रकार के असाइनमेंट में किसी विशेष परिस्थिति को दर्शाया जाता है, कि अमुक परिस्तिथियों के तहत पॉलिसी का असाइनमेंट समाप्त हो जायेगा। असाइनमेंट समाप्त होने के बाद पॉलिसी का सम्पूर्ण दाइत्व और लाभ सबकुछ कर्मचारी का होगा। 
  2. समय के आधार पर- इस प्रकार के असाइनमेंट में किसी विशेष समय को दर्शाया जाता है कि अमुक समय के बाद पालिसी का असाइनमेंट समाप्त हो जायेगा। असाइनमेंट समाप्त होने के बाद पॉलिसी का सम्पूर्ण दाइत्व और लाभ सबकुछ कर्मचारी का होगा। 
यहाँ पर एक महत्वपूर्ण बात आपको ध्यान रखनी चाहिए कि एक बार पॉलिसी के असाइनमेंट हो जाने के बाद उसमे कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। तो जब कभी इस व्यवस्था के विषय में आपको बातचीत करनी हो तो इस महत्वपूर्ण बिंदु को अपने भावी ग्राहक को जरूर बता देना चाहिए। ताकि बाद में विवाद की स्तिथि पैदा न हो। 


कर्मचारी की मृत्यु होने पर क्या होगा-

नियोक्ता कर्मचारी योजना के तहत की गई पॉलिसी के अंतर्गत हुई पॉलिसी में मृत्यु दावे की परिस्तिथियाँ क्या होगी। या यदि इसे दूसरे और साधारण भाषा में कहा जाये तो तब क्या होगा जब कर्मचारी की मृत्यु हो जाये। 

तो मेरे प्यारे अभिकर्ता साथियो, यदि नियोक्ता कर्मचारी योजना के तहत कर्मचारी की मृत्यु होती है तो मृत्यु दावे का भुगतान, की गई पॉलिसी के नियमो के आधार पर हो जायेगा। परन्तु यहाँ पर प्रश्न उठता है किसे?

तो यहाँ पर निगम पॉलिसी के असाइनमेंट को देखता है। यदि असाइनमेंट से पूर्व कर्मचारी की मृत्यु होती है तो अलग स्थिति होती है और यदि असाइनमेंट के बाद कर्मचारी की मृत्यु होती है तो अलग स्तिथि बनती है। आइये दोनों ही परिस्तिथियों को बारी बारी से समझते है। 

यदि असाइनमेंट समाप्त होने से पूर्व मृत्यु हो- यदि नियोक्ता कर्मचारी योजना में की गई पॉलिसी में मृत्यु दावा, उस पॉलिसी में हुए असाइनमेंट के समाप्त होने से पूर्व आता है। ऐसे परिस्तिथि में दावे का भुगतान नियोक्ता को होगा। 

नियोक्ता को बीमा कंपनी से मिली धनराशि को उस कर्मचारी के लीगल वारिस को दे दिया जाता है। अब यहाँ पर जब बीमा कंपनी नियोक्ता को मृत्यु दावे का भुगतान करेगी। तब, उस वर्ष के टैक्स फाइल करते समय नियोक्ता को उस मृत्यु दावे से प्राप्त धनराशि को प्रदर्शित करना होगा। साथ ही, कर्मचारी के बारिस को भुगतान दे देने के बाद वह धनराशि घटा दी जाएगी। अतः नियोक्ता को टैक्स बुक करते समय कोई समस्या नहीं होती है। 

यदि असाइनमेंट समाप्त होने के बाद मृत्यु हो- यदि नियोक्ता कर्मचारी योजना में की गई पॉलिसी में मृत्यु दावा, उस पॉलिसी में हुए असाइनमेंट के समाप्त होने से बाद आता है। ऐसे परिस्तिथि में दावे का भुगतान कर्मचारी के पॉलिसी में दर्ज नॉमिनी को होता है। 

कर्मचारी ऑर्गनाइजेशन के छोड़ने की दशा में क्या होगा-

नियोक्ता कर्मचारी योजना के तहत हुई पॉलिसी में एक सबसे महत्वपूर्ण विषय होता है कि यदि कर्मचारी उस ऑर्गनाइजेशन को छोड़कर चला जाता है। तो नियोक्ता द्वारा इस व्यवस्था के तहत हुई पॉलिसी का क्या होगा। तो यहाँ पर भी दो परिस्तिथियाँ होती है। आइये उसे समझते है। 

असाइनमेंट समाप्त होने से पहले- यदि कोई कर्मचारी अपने ऑर्गनाइजेशन को रिजाइन कर देता है। परन्तु उस समय उसकी पॉलिसी पर असाइनमेंट होता है। तो, ऐसे स्तिथि में नियोक्ता उसके जीवन पर जारी पॉलिसी को सरेंडर कर सकता है। 

जब नियोक्ता द्वारा उस पॉलिसी को सरेंडर किया जाता है तो बीमा कंपनी उस पॉलिसी के सरेंडर अमाउंट का भुगतान नियोक्ता को कर देती है। ऐसी स्तिथि में, उस वर्ष में उस नियोक्ता के लिए इस पॉलिसी से प्राप्त पैसा उसकी आय माना जाता है। जिसके ऊपर टैक्स भुगतान करने का दाईत्व उस नियोक्ता के ऊपर होता है। 

असाइनमेंट समाप्त होने के बाद- यदि कोई कर्मचारी अपने ऑर्गनाइजेशन को रिजाइन कर देता है। परन्तु उस समय उसकी पॉलिसी पर असाइनमेंट समाप्त हो चूका होता है। तो ऐसी स्तिथि में वह कर्मचारी अपने जीवन बीमा पॉलिसी का मालिक होता है। वह अपने पॉलिसी को जारी रख सकता है और  उस पॉलिसी के भविष्य के सभी लाभों पर उसका अपना एकाधिकार होता है। 


Share on Whatsapp

मेरे विचार-

प्यारे साथियो, नियोक्ता कर्मचारी योजना आपके एजेंसी व्यवसाय में बड़ी सफलता दिलाने में आपकी बड़ी सहायता कर सकते है। मैंने अपने इस लेख के जरिये आपको इस व्यवस्था के तहत साधारण भाषा में चीज़ो को बताने का प्रयास किया है। ताकि आप नियोक्ता कर्मचारी योजना के महत्व को आसानी से समझ सके और इस दिशा में कार्य कर सके। 

अधिकतम अभिकर्ता सोचते है कि हमें बड़ा बीमा बेचना चाहिए। लेकिन, जानकारी और प्रयास की कमी की वजह से इस दिशा में सफल नहीं हो पाते है। एक अभिकर्ता सफल हो सकता है यदि वह क्रमवद्ध तरीके से कार्य करता रहता है। इसमें हमारा यूट्यूब चैनल "Ritesh Lic Advisor" आपकी बड़ी सहायता कर सकता है। 

हमारे यूट्यूब चैनल  "Ritesh Lic Advisor"  पर आज की डेट में हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जानकारी पोस्ट है। आप इस चैनल पर प्लेलिस्ट के जरिये जानकारी प्राप्त कर सकते है। 

नोट-

यदि आप भविष्य के अपडेट प्राप्त करना चाहते हो तो "SUBMIT YOUR EMAIL FOR UPDATE" के नीचे अपनी जीमेल आईडी लिखकर सब्सक्राइब की बटन दबा दे। इसका लाभ आपको यह होगा कि जब भी हमारी कोई पोस्ट पब्लिश होगी। उसका नोटिफिकेशन आपको तुरंत मिल जायेगा।

मेरे सोशल मीडिया लिंक-
G-mail- riteshlicadvisor01@gmail.com
Facebook- https://www.facebook.com/riteshlicadvisor
Twitter- https://twitter.com/LIC_Trainer
Website- https://www.jeevanbimabazaar.com/
Telegram Group For Life Insurance Agents- https://t.me/riteshlicadvisor01

(आप हमें Google Search Engine अथवा Youtube Search Engine के सर्च बॉक्स में "Ritesh Lic Advisor" लिखकर सर्च कर सकते है।)

हम हमारे प्रयासों से एक एलआईसी अभिकर्ता के व्यवसाय को बेहतर करने हेतु निरंतर प्रयास रत है। हमारी
MWP ACT
सभी ट्रेनिंग बिलकुल मुफ्त है। परन्तु बिना आर्थिक सहयोग के जीवन और व्यवसाय का हर पहलु काफी कठिन
हो जाता है। आज हम कुछ इसी प्रकार के कठिन दौर से गुज़र रहे है।

प्यारे अभिकर्ता साथियो,
यदि आपको हमारे प्रयासों से लाभ मिला हो और आप अपने अभिकरण व्यवसाय में आर्थिक रूप से मज़बूत हुए हो और आप हमारी आर्थिक सहायता करना चाहते हो तो Paytm के जरिये अपनी स्वेक्षा से हमारा सहयोग कर सकते है। हम आपके इस सहयोग के लिए आपके आभारी रहेंगे और भविष्य में और बेहतर करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहेंगे।

No comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in the comment box.