13 September 2021

Nominee Rights in India | भारत में नॉमिनी के अधिकार

 भारत में नॉमिनी के अधिकार

प्यारे साथियो, मैं अपने इस लेख में नॉमिनी के विषय में संक्षिप्त रूप में विशेष जानकारी देने का प्रयास करने जा रहा हूँ। अपने इस लेख के जरिये हमारा प्रयास होगा कि भारतीय कानून में वर्णित धाराओं को सामान्य भाषा के रूप में आपके सम्मुख रख सकू। ताकि आप इसे आसानी से समझ सके।

इस लेख का उदेश्य सिर्फ इतना है कि आपको नॉमिनी के संदर्भ में एक सामान्य एवं सही जानकारी हो। लेकिन फिर भी मैं इस लेख के जरिये किसी भी नियम अथवा कानून का दावा नहीं करता हूँ। आप हमारे लेख में पोस्ट जानकारी का उपयोग एक सामान्य जानकारी को वृद्धि के रूप में ले सकते है। विशेष जानकारी अथवा कानूनी जानकारी के लिए आपके लिए हमारी राय होगी कि आपको इस विषय के एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए।

Nominee Rights in India | भारत में नॉमिनी के अधिकार

नॉमिनी क्या होता है-

एक व्यक्ति अपने पुरे जीवन काल में अलग अलग तरीके से कमाई करता है। इस कमाई के जरिये वह व्यक्ति अपनी और अपने परिवार के रोटी, कपडा, मकान की जरूरतों को पूरा करता है। साथ ही, समाज के अलग अलग तरह के दाइत्वों का निर्वहन भी करता है। एक व्यक्ति अपनी सभी पारिवारिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के बाद कुछ चल और अचल सम्पत्ति का निर्माण भी करता है। वह बैंको में, पोस्ट ऑफिस में, म्यूच्यूअल फंड्स में और दूसरे वित्तीय संस्थाओ में अलग अलग तरह की बचत करता है। इसी प्रकार अलग अलग तरह के आभूषण और जमीन जायदाद में भी निवेश करता है। इसी प्रकार उसके पूर्वजो से भी उसे कुछ चल एवं अचल संपत्ति विरासत के रूप में मिल जाती है। एक व्यक्ति का, उसके द्वारा अर्जित की गई एवं विरासत में प्राप्त सभी चल-अचल सम्पत्ति पर, पूर्ण अधिकार होता है।

वह व्यक्ति अपने द्वारा कमाई गई अथवा विरासत में प्राप्त सम्पत्ति के लिए नॉमिनी नियुक्त कर सकता है। नॉमिनी एक व्यक्ति द्वारा नियुक्त किया गया वह व्यक्ति होता है जिसे उस व्यक्ति की मृत्यु की दशा में, उस व्यक्ति की सभी चल अचल सम्पत्ति मिल जाती है।


किसी सम्पत्ति के लिए कितने नॉमिनी नियुक्त हो सकते है -

भारतीय कानून के अनुसार, आप अपनी एक ही संपत्ति के लिए अथवा एक से अधिक सम्पत्ति के लिए, एक अथवा एक से अधिक नॉमिनी बना सकते है। भारतीय कानून के अनुसार आप अपने पुत्र, पुत्री, पति, पत्नी, माता, पिता, भाई, बहन, चाचा, चाची अथवा किसी भी दूसरे सम्बन्धी या फिर अपने किसी मित्र को अपनी चल अथवा अचल सम्पत्ति का नॉमिनी बना सकते है। 


किसी सम्पत्ति पर नॉमिनी का अधिकार कब होता है -

एक व्यक्ति का अपने चल एवं अचल सम्पत्ति पर आजीवन अधिकार रहता है। अपने जीवन काल में वह जब चाहे अपने सम्पत्ति को खर्च कर सकता है। जब उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तब मृत्यु हो जाने के बाद उस सम्पत्ति को नॉमिनी को सौप दिया जाता है।


क्या नॉमिनी उस सम्पत्ति का मालिक होता है-

भारतीय कानून के अनुसार नॉमिनी किसी सम्पत्ति का मालिक नहीं होता है। यदि सरल शब्दों में इसे समझना हो तो आप इसे इस प्रकार समझ सकते है कि यदि आप किसी संपत्ति में नॉमिनी है और वह संपत्ति जिस व्यक्ति की है उसकी मृत्यु के बाद आपको मिल जाती है। तो आपको उस संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिलता है। बल्कि, उस व्यक्ति के वास्तविक हक़दारो तक उस सम्पत्ति को पहुचाने की जिम्मेदारी मिलती है।

ध्यान दे- ज्यादातर लोग जब बैंक में सेविंग अकाउंट खोलते है या फिर फिक्स्ड डिपाजिट कराते है, म्यूच्यूअल फण्ड में अपने पैसे लगाते है अथवा जीवन बीमा पॉलिसी खरीदते है या फिर कोई दूसरी चल अचल सम्पत्ति बनाते है तो वहाँ पर नॉमिनी बना देते है। उन्हें यह गलत फहमी रहती है उनकी मृत्यु के बाद उनके सारे पैसो का मालिकाना हक नॉमिनी को मिल जायेगा। भारतीय कानून के अनुसार, नॉमिनी एक ट्रस्टी होता है अर्थात केयर टेकर की तरह होता है। जो हमारी मृत्यु के बाद, हमारे पैसो को हमारे अपनों तक पहुंचाता है।


नॉमिनेशन का क्या महत्व होता है-

जब एक व्यक्ति अपने चल अचल सम्पत्ति के लिए नॉमिनी नियुक्त करता है। तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति का ट्रांसफर सुविधाजनक तरीके से हो जाता है। नॉमिनी बनाते समय आपको योग्य व्यक्ति का चुनाव करना जरुरी होता है। ताकि वह आपकी सम्पत्ति को आपके कानूनी वारिशों तक सरलता से पंहुचा दे। 

यदि आपका कानूनी वारिश ही आपका नॉमिनी है। तब ऐसे स्तिथि में हर समस्या का समाधान स्वयमेव हो जाता है। लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार, शेयर और EPF में नॉमिनी बनाते समय आपको विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योकि EPF और शेयर के केस में जो नॉमिनी होता है उसे ही कानूनी मालिक माना जायेगा। 

ध्यान दे- जब भी कभी आपको नॉमिनी बनाने की जरुरत महसूस हो तो आपके लिए यह बेहतर होगा कि आप नॉमिनी नियुक्त करते समय कम से कम दो लोगो को गवाह के रूप में जरूर रखना चाहिए। यह गवाह आपके विश्वास पात्र होने चाहिए। ऐसा करने से आपके कानूनी वारिशों की सुरक्षा बनी रहेगी।


नॉमिनी कब बनाया जा सकता है-

यदि आप किसी बैंक, पोस्ट ऑफिस, शेयर अथवा जीवन बीमा पॉलिसी या फिर किसी भी दूसरे वित्तीय संस्थानों में निवेश करने की योजना बना रहे हो। तब एग्रीमेंट फॉर्म अथवा सम्बंधित निवेश के फॉर्म को भरते समय ही नॉमिनी नियुक्त कर देना चाहिए। आपने कोई प्रॉपर्टी खरीदी हो अथवा कोई ऐसा निवेश किया हो जिसके माध्यम से आपको अथवा आपके अपनों को भविष्य में आर्थिक लाभ मिलता हो, तो ऐसे सभी निवेश करते समय ही नॉमिनी नियुक्त कर देना चाहिए। 

परन्तु किसी कारण वश यदि आपने अपने किसी भी चल अचल संपत्ति के लिए नॉमिनी नियुक्त नहीं किया है। तो भारतीय कानून आपको यह अधिकार देता है कि आप बाद में भी जब चाहे अपने सभी प्रकार की सम्पत्ति के लिए नॉमिनी बना सकते है।


क्या नॉमिनी बदला जा सकता है-

भारतीय कानून अपने नागरिको को यह अधिकार देता है कि वह जब चाहे और जितनी बार चाहे, अपने द्वारा कमाई गई अथवा विरासत में पाई गई या फिर उपहार में प्राप्त किसी भी सम्पत्ति को, जिस पर उसका एक मात्र कानूनी स्वामित्व हो, एक या एक से अधिक नॉमिनी बना सकता है अथवा बदल सकता है।


कहाँ कहाँ बनाया जा सकता है नॉमिनी-

भारतीय कानून के हिसाब से नॉमिनी सिर्फ एक ट्रस्टी अथवा केयरटेकर की तरह होता है। वह मृतक की सम्पत्ति को एक ट्रस्टी की तरह होल्ड कर सकता है उस पर अपना अधिकार नहीं लगा सकता है। परन्तु इन सभी के बावजूद कुछ मामलो में नॉमिनी को ही कानूनी मालिक भी माना जाता है। अलग अलग परिवेश में कानूनी स्तिथि भी अलग अलग होती है। आइये इसे समझते है-

जीवन बीमा पॉलिसियों में- 

जीवन बीमा अधिनियम 1938 की धारा 39 के अनुसार, जीवन बीमा कम्पनी को किसी पॉलिसी में बताये गए नॉमिनी को मृत्यु दावे का भुगतान करना होगा। यह कानून नॉमिनी से यह उम्मीद करता है कि वह जीवन बीमा कंपनी से प्राप्त मृत्यु दावे की रकम मृतक बीमाधारक के कानूनी वारिशों में मृतक बीमाधारक द्वारा बनाये गए कानूनी वसीयत के अनुसार वितरित कर देगा। 

यदि मृतक बीमाधारक ने अपनी कोई वसीयत नहीं बनाई है। ऐसी स्तिथि में भी नॉमिनी को चाहिए कि मृतक बीमाधारक के सभी लीगल वारिशों में जीवन बीमा कंपनी से प्राप्त समस्त धनराशि बराबर बराबर बाँट दे। वसीयत न होने की स्तिथि में नॉमिनी को भारतीय उत्तराधिकार कानून का पालन करना अनिवार्य होता है। 

अर्थात जीवन बीमा मृत्यु क्लेम के मामले में नॉमिनी मालिक न होकर सिर्फ एक ट्रस्टी की तरह कार्य करता है और मृत्यु दावे की रकम कानूनी वारिशों तक पहुंचाता है।



जीवन बीमा योजनाओ के लिए बीमा अधिनियम 1938 का प्रावधान है। इस अधिनियम की पीडीऍफ़ फाइल इस पोस्ट के साथ शेयर की जा रही है। बीमा अधिनियम 1938 की धारा 39 में, जीवन बीमा पॉलिसियों के लिए जानकारी दी गई है। पीडीऍफ़ फाइल के पेज संख्या- 54 पर धारा 39 को दिखाया गया है। 

बीमा अधिनियम की पीडीऍफ़ फाइल को डाउनलोड करने हेतु- यहाँ क्लिक कीजिये 

बैंक अकाउंट एवं अन्य निवेशों के लिए- 

बैंको में एक नॉमिनी बनाने का प्रावधान होता है। बैंको में आपने फिक्स्ड डिपाजिट किया हो अथवा रिकरिंग डिपॉज़िट कराया हो अथवा आपने बैंक से लॉकर अकाउंट लिया हो। आप अपने सभी प्रकार के डिपाजिट के लिए एक नॉमिनी नियुक्त कर सकते है। यदि आप चाहे तो एक ही बैंक में अलग अलग प्रकार के अकाउंट के लिए अलग अलग नॉमिनी बना सकते है। परन्तु बैंक, आपको अपने प्रत्येक अकाउंट के लिए एक ही नॉमिनी नियुक्त करने का अधिकार देती है। 

रिजर्ब बैंक ऑफ़ इंडिया के नियमो के अनुसार बैंक अथवा इसी सामान किसी दूसरे निवेश में नॉमिनी उस धनराशि का स्वामी नहीं हो सकता है। यदि बैंक में आपने जॉइंट खाता खोला है तो आपके मृत्यु के बाद आपके खाते का स्वामित्व दूसरे खाता होल्डर को मिल जायेगा और उसके भी मृत्यु के बाद खाते की धनराशि नॉमिनी को ट्रांसफर कर दी जाएगी। 

खाता धारक की मृत्यु के बाद, बैंक नॉमिनी से यह उम्मीद करता है कि वह बैंक से प्राप्त धनराशि की रकम मृतक खाता धारक के कानूनी वारिशों में मृतक द्वारा बनाये गए कानूनी वसीयत के अनुसार वितरित कर देगा। वसीयत न होने की स्तिथि में नॉमिनी को भारतीय उत्तराधिकार कानून का पालन करना अनिवार्य होता है। 

बैंकिंग सेवाओं के बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम की पीडीऍफ़ फाइल इस पोस्ट के साथ शेयर की जा रही है। बैंकिंग अधिनियम 1949 की धारा 45 के अलग-अलग सब धाराओं में, बैंकिंग योजनाओ के नॉमिनी के सन्दर्भ जानकारी दी गई है। पीडीऍफ़ फाइल के पेज संख्या- 117 पर इस धारा को दिखाया गया है।

बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट की पीडीऍफ़ फाइल को डाउनलोड करने हेतु- यहाँ क्लिक कीजिये 

कम्पनी प्रतिभूतियो के मामले में- 

कंपनी एक्ट 1956 के सेक्शन 109A के अनुसार मूल शेयर होल्डर की मृत्यु के बाद नॉमिनी उसके शेयर का कानूनी तौर पर मालिक बन जाता है। यदि मूल शेयर होल्डर ने अपने जीवन काल में किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को अपने वसीयत में हक़दार बनाया है। ऐसे स्तिथि में भी नॉमिनी ही उसके कम्पनी प्रतिभूतियों का कानूनी वारिश माना जाता है।

कंपनी एक्ट 1956 की पीडीऍफ़ फाइल भी इस पोस्ट में साझा किया जा रहा है। कम्पनी एक्ट 1956 की धारा 109 A में नॉमिनेशन के विषय में जानकारी दी गई है। इसके पीडीऍफ़ फाइल के पेज संख्या - 71 पर धारा 109 A की जानकारी दी गई है। 

कम्पनी एक्ट 1956 की पीडीऍफ़ फाइल को डाउनलोड करने हेतु- यहाँ क्लिक कीजिये 

प्रॉपर्टी के मामले में- 

प्रॉपर्टी के मामलो में वसीयत और सेक्शन लॉ कार्य करते है। इसके लिए नॉमिनी की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है।

कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में प्रॉपर्टी के मामलो में- 

यदि आप किसी कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में है। तब आपको नॉमिनी नियुक्त करना जरुरी हो जाता है। लेकिन इस मामले में भी नॉमिनी इस प्रॉपर्टी का मालिक नहीं बन सकता है। बल्कि एक ट्रस्टी की तरह कार्य करता है। मालिक की मृत्यु होने पर नॉमिनी को हाउसिंग सोसाइटी प्रॉपर्टी को ट्रांसफर कर दिया जाता है और नॉमिनी मृतक के कानूनी वारिशों को इस प्रॉपर्टी को ट्रांसफर कर देता है।

कर्मचारी भविष्य निधि में- 

कर्मचारी भविष्य निधि अर्थात EPF की स्तिथि बिलकुल भिन्न है। कर्मचारी भविष्य निधि स्किम 1952 के सेक्शन 61 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने कर्मचारी भविष्य निधि के खाते में परिवार के सदस्यों के आलावा किसी अन्य व्यक्ति को नॉमिनी नहीं बना सकता है। यदि किसी कर्मचारी भविष्य निधि धारक का विवाह नहीं हुआ हो और उसका कोई परिवार न हो। तब वह किसी अन्य व्यक्ति को नॉमिनी बना सकता है। लेकिन विवाह हो जाने के बाद अपने परिवार को नॉमिनी के रूप में बदलना अनिवार्य होता है। कोई भी कर्मचारी भविष्य निधि धारक अपने परिवार के किसी एक, एक से अधिक अथवा सभी सदस्यों को अपना नॉमिनी बना सकता है। यही नहीं, यदि वह चाहे तो इस निधि की धनराशि को अपने सभी नॉमिनी के बीच वितरण करने का अनुपात भी निश्चित कर सकता है। EPF धारक की मृत्यु के बाद उसका नॉमिनी ही उसका वारिश हो जाता है।

एम्प्लाइज प्रोविडेंट फण्ड एक्ट 1952 की पीडीऍफ़ फाइल डाउनलोड करने हेतु- यहाँ क्लिक कीजिये 

क़ानूनी वारिस किसे कहते है-

ऐसा व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह किसी मृतक का कानूनी वारिस हो सकता है, जो मृतक की सम्पत्ति और निवेश का अंतिम मालिक बनने का हक़दार हो। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति का मूल रूप से कानूनी वारिस कौन हो सकता है।

विवाहित व्यक्ति के लिए- 

यदि कोई व्यक्ति (महिला अथवा पुरुष) विवाहित है तो उसका मूल कानूनी वारिस उसके पति, पत्नी, बच्चे और माता-पिता हो सकते है।

अविवाहित व्यक्ति के लिए- 

यदि कोई व्यक्ति (महिला अथवा पुरुष) अविवाहित है तो उसका मूल कानूनी वारिस उसके माता-पिता और भाई-बहन हो सकते है।




सभी फाइलें एक साथ डाउनलोड करें- 

इस लेख के उपरोक्त विषय में दी गई सभी पीडीएफ फाइल को एक साथ डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करें


Download File


हमारी राय-

मेरे प्यारे साथियो, यदि आप चाहते है कि मृत्योपरांत आपकी सारी सम्पत्ति आपके इच्छित व्यक्ति या व्यक्तियों को ही मिले। तो इसके लिए हमारी राय यही होगी कि इसके लिए आपको वसीयत जरूर बनवा लेनी चाहिए। यदि आप वसीयत बनवाने का निर्णय ले रहे हो, तो आपको पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि आप अपने सम्पत्ति में से किस व्यक्ति को क्या देना चाहते है। 

भारतीय कानून के अनुसार वसीयत एक सर्वोपरि दस्तावेज की तरह कार्य करता है। यदि आपकी वसीयत वैध साबित होती है। तो अदि आपने अपने जीवन काल में किसी भी व्यक्ति को नॉमिनी बनाया है या फिर कोई दूसरा अरेंजमेंट किया है। तो भी आपकी वसीयत उसे भी ओवरराइड कर जाएगी। आपके द्वारा बनाये गए वसीयत के नियम उन चीज़ो पर भी लागु होंगे जिनके लिए आपने नॉमिनेशन नहीं किया होगा। 

अतः वसीयत बनाना आपके लिए एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसे बनवाते समय आपको पूर्ण सावधानी और समझदारी से कार्य करना बहुत जरुरी होता है। अतः हमारी राय यह भी होगी कि इसके लिए आपको किसी एक्सपर्ट जो कि आपका विश्वास पात्र भी हो, से भी सलाह अवश्य लेनी चाहिए। ऐसा करना आपके अपनों को कानूनी झगड़ो से दूर रखता है। और आपके सम्पत्ति बटवारे में सुविधा भी प्रदान करता है। 


एलआईसी के विकास अधिकारियों के लिए -

यदि आप भारतीय जीवन बीमा निगम के विकास अधिकारी अथवा सीएलआईए अभिकर्ता हैं, तब यह पोस्ट आपके अभिकर्ताओं के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। यदि आप चाहें तो अपने अभिकर्ताओं के हित को ध्यान में रखते हुए इस पोस्ट को उनके साथ शेयर कर सकते हैं। 


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