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किसी भी परिवार के लिए वह सबसे कठिन समय होता है, जब उस परिवार का कोई सदस्य परिवार को छोड़कर हमेसा के लिए चला जाता है। यह एक ऐसा आघात है जिसे शब्दों में बयान कर पाना मेरे लिए बहुत अधिक कठिन है। ऐसे कठिन समय में, किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना जितना अधिक कठिन होता है, उतना ही मत्वपूर्ण आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी होता है। जीवन बीमा की पॉलिसियां, ऐसे समय में परिवार के भविष्य को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए बहुत अधिक अहम हो जाती है।

जीवन बीमा बाजार के विभिन्न लेखों के माध्यम से हम प्रत्येक जरूरतमंद के लिए मृत्यु दावा प्रक्रिया को अत्यधिक सरल और स्पष्ट बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। यही वजह है कि आज के इस लेख के माध्यम से, हम भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के मृत्यु दावा प्रक्रिया में उपयोग किये जाने वाले एक फॉर्म, जिसे फॉर्म संख्या 3816 कहते हैं, के बारे में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करने जा रहे हैं।

इस लेख में, हम इस फॉर्म से जुडी हुई सभी जरुरी जानकारी को विस्तार से जानेंगे, ताकि एलआईसी एजेंटो, पॉलिसीधारकों एवं उनके परिवार के सदस्यों को मृत्यु दावा प्रक्रिया में किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े। हम यह प्रयास कर रहे हैं कि इस लेख को पढ़ने के बाद, आप खुद को इस प्रक्रिया के लिए सशक्त महसूस करें और यह आत्मविश्वास महसूस करें कि आप खुद से इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को आसानी से पूरा कर सकते हैं।

    एलआईसी मृत्यु दावा फॉर्म 3816

    एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 या 3816-B1, एलआईसी के मृत्यु दावा प्रक्रिया में उपयोग किया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण फॉर्म है। एलआईसी के इस फॉर्म को सर्टिफिकेट ऑफ हॉस्पिटल ट्रीटमेंट के नाम से भी जाना जाता है। इस फॉर्म का उपयोग भी लगभग सभी प्रकार के मृत्यु दावे के लिए किया ही जाता है। अर्ली डेथ-क्लेम के मामलों में निगम इस फॉर्म की मांग जरूर करती है।

    वास्तव में यह फॉर्म उस अस्पताल द्वारा भरवाया जाता है जहाँ मृत पॉलिसीधारक का अंतिम बार उपचार हुआ था या जहा पर उसे मृत घोषित किया गया था। चुकी यह फॉर्म अस्पताल से सम्बंधित उपचार और मृत्यु से जुड़े मेडिकल प्रमाण के लिए जरुरी होता है, इसलिए इसे सर्टिफिकेट ऑफ हॉस्पिटल ट्रीटमेंट कहा जाता है। चुकी यह फॉर्म मृत्यु दावे की सत्यता और वैधता को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाता है इसलिए निगम लगभग प्रत्येक मृत्यु दावे में इसकी मांग करता है।

    एलआईसी मृत्यु दावा फॉर्म 3816 की पीडीऍफ़ फाइल

    बीमाधारक के मृत्यु के बाद, जीवन बीमा पॉलिसी में वर्णित नॉमिनी को अथवा उसके वैध उत्तरधिकारी को एलआईसी की होम ब्रांच (जहा से पॉलिसी जारी की गई थी) को मृत्यु की लिखित सुचना प्रस्तुत करनी होती है। सूचना प्राप्त होने के बाद, एलआईसी ऐसे मृत्यु दावे को पंजीकृत कर लेती है और नॉमिनी अथवा दावेदार के लिए जरुरी मृत्यु दावा फॉर्म एवं दिशानिर्देश जारी करती है।

    इन महत्वपूर्ण मृत्यु दावे फॉर्म में एक फॉर्म एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 (सर्टिफिकेट ऑफ हॉस्पिटल ट्रीटमेंट) भी होता है। आमतौर पर, नॉमिनी को मृत्यु दावा सूचना प्रस्तुत करने के कुछ दिनों के अंदर ही एलआईसी द्वारा जरुरी फॉर्म और दिशानिर्देश भारतीय डाक अथवा अन्य आधिकारिक माध्यमों द्वारा भेज दिया जाता है। इन फॉर्मो को सावधानी पूर्वक भरकर, निगम द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए जमा करना होता है।

    हालाँकि मृत्यु दावा सूचना देने के कुछ दिनों के बाद निगम स्वयं ही यह फॉर्म भेज देती है, लेकिन नॉमिनी और दावेदार की सुविधा को ध्यान में रखते हुए हम यहाँ पर एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 को डाउनलोड करने की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। आप इसको डाउनलोड करके मृत्यु दावा प्रक्रिया में इसका उपयोग कर सकते हैं।

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    एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 का महत्व

    भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के मृत्यु दावा प्रक्रिया में फॉर्म संख्या 3816 (सर्टिफिकेट ऑफ हॉस्पिटल ट्रीटमेंट) एक बहुत ही महत्वपूर्ण फॉर्म होता है। यह फॉर्म उस अस्पताल द्वारा भरवाया जाता है और प्रमाणित कराया जाता है, जहां पर मृत्यु से ठीक पहले पॉलिसीधारक का इलाज चल रहा था या जहां पर पॉलिसीधारक को मृत घोषित किया गया था। यह एक ऐसा फॉर्म है जो मृत्यु दावे की वैधता को स्थापित करने में मददगार साबित होता है।

    आइये समझते हैं कि एलआईसी के मृत्यु दावा प्रक्रिया में फॉर्म संख्या 3816 का उपयोग क्यों किया जाता है:

    • मृत्यु का प्रमाण: यह फॉर्म अस्पताल द्वारा भरवाया जाता है। अस्पताल अपने रिकॉर्ड के आधार पर मृतक के बीमारी, बीमारी की अवधि, उपचार और मृत्यु के कारणों का विवरण इस फॉर्म के जरिये प्रस्तुत करता है। इस प्रमाण के आधार पर, एलआईसी को मृत्यु दावे के लिए सटीक निर्णय लेने में बहुत अधिक मदद प्राप्त होती है।
    • मेडिकल रिकॉर्ड: फॉर्म में बीमारी का विवरण, उपचार की अवधि और मृत्यु के सटीक कारणों से सम्बंधित जानकारी होती है। जिससे दावा प्रक्रिया पारदर्शी बनता है।
    • प्रामाणिक दस्तावेज: चुकी यह फॉर्म अस्पताल द्वारा भरा जाता है इसलिए इसको निगम एक प्रामाणिक दस्तावेज के रूप में स्वीकार करता है। जिसके परिणाम स्वरुप, यह फॉर्म दावा निपटान में विश्वसनीयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • दावा प्रक्रिया को सरल बनाना: एक बार जब नॉमिनी अथवा दावेदार इस फॉर्म को अस्पताल से प्रमाणित करवा लेता है, तो उसको अन्य कई तरह के अतिरिक्त क़ानूनी जटिलताओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
    • विवाद समाधान: फॉर्म संख्या 3816 के आधार पर एलआईसी मृत्यु दावे के सत्यता की पुष्टि कर सकती है जिसके फलस्वरूप मृत्यु दावे का शीघ्र एवं बिना किसी विवाद के जल्द भुगतान संभव हो सकता है।

    फॉर्म संख्या 3816 को कैसे भरें

    अगर आप नॉमिनी अथवा दावेदार हैं तो आपके लिए हमारी यही सलाह होगी कि आप इस फॉर्म को खुद से न भरें। क्योकि इसमें दी जाने वाली सभी जानकारी अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार ही होती है। तो अगर आप खुद से इस फॉर्म को भरने की गलती करते हैं तो निश्चित रूप से गलती हो सकती है, जिसके परिणाम स्वरुप आपके मृत्यु दावा प्रक्रिया में बाधा हो सकती है। अतः आपके लिए हमारी सलाह होगी कि इस फॉर्म को सम्बंधित अस्पताल से ही भरवायें।

    अगर आप एलआईसी एजेंट है तो आपके लिए भी हमारी यही सलाह होगी कि आपको भी खुद से इस फॉर्म को नहीं भरना चाहिए। लेकिन आपके लिए यह जरुरी है कि आप इस फॉर्म को बेहतर तरीके से समझे ताकि जरुरत पड़ने पर सम्बंधित अस्पताल को इस फॉर्म को भरने के लिए सलाह दे सकें। तो चलिए अब समझते हैं कि इस फॉर्म को कैसे भरा जाता है।

    यहाँ पर जानकारी शुरू करने से पहले मेरी यह सलाह होगी कि यहाँ पर सभी जानकारी हिंदी में दी जा रही है अतः यह संभव है कि आपको फॉर्म में दिए हुए प्रश्नो को लेकर कुछ कन्फ्यूजन हो। ऐसे में आपके लिए हमारी सलाह होगी कि इस लेख के ऊपर में दिए हुए बटन "रीड इन इंग्लिश" पर क्लिक करके, आप सम्बंधित कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए प्रयास कर सकते हैं।

    एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 का हेड:

    जैसे ही आप फॉर्म को शुरू करते हैं सबसे पहले आपको आपके शाखा कार्यालय का नाम लिखना होता है। यहाँ पर आपको एलआईसी की उस शाखा कार्यालय का नाम लिखना होता है जहाँ से एलआईसी की पॉलिसी खरीदी गई थी। अगर पॉलिसी किसी दूसरे ब्रांच में ट्रांसफर हो चुकी है तो नई ब्रांच का नाम और कोड लिखना होता है।

    अब आपके मन में यह सवाल हो सकता है कि एलआईसी के शाखा कार्यालय का नाम और कोड कैसे प्राप्त करें। तो इसके लिए आप मूल पॉलिसी बांड अथवा प्रीमियम रसीद की मदद ले सकते हैं। एलआईसी के पॉलिसी बांड और रसीद के ऊपर एलआईसी के शाखा कार्यालय का नाम और कोड नम्बर लिखा होता है।

    अब आपको पॉलिसी नंबर और मृतक पॉलिसीधारक का नाम लिखना होता है। यह दोनों जानकारी भी एलआईसी पॉलिसी के पॉलिसी बांड और रसीद पर मिल जाती है।

    प्रश्न 1: अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार मरीज का पूरा नाम, आयु, पता और व्यवसाय क्या था?

    उत्तर: यहाँ पर अस्पताल को बताना होता है कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार मृतक पॉलिसीधारक का पूरा नाम, आयु, पता और व्यवसाय क्या था। सामान्यतौर पर जब अस्पताल में कोई व्यक्ति भर्ती होता है या इलाज चल रहा होता है, तो अस्पताल स्वम ही अपने मरीज की यह सभी जानकारी अपने रिकॉर्ड में रखता है।

    कुछ मामलों में पॉलिसीधारक के व्यवसाय का विवरण अस्पताल के पास नहीं हो सकता है। ऐसे में यदि आप चाहें तो खुद से उसका व्यवसाय बताकर डाटा दर्ज करवा सकते हैं, अथवा अस्पताल यहाँ पर लिख सकता है कि उनके दस्तावेज में यह रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

    प्रश्न 2: अस्पताल में उनके दाखिल होने की तारीख क्या थी?

    उत्तर: यहाँ पर एलआईसी यह जानना चाहती है कि यदि पॉलिसीधारक को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तो अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार उसे आखरी बार कब भर्ती कराया गया था।

    यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि कुछ मामलों में मरीज की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो सकती है। ऐसे मामलों में, वह तारीख लिखना उचित हो सकता है जिस दिन डॉक्टर ने मरीज की जांच की और उसे मृत घोषित किया। हालांकि, यह कोष्ठक में लिखा जाना चाहिए कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई थी।

    प्रश्न 3: अस्पताल में भर्ती होने से पहले मरीज किसका इलाज करवा रहा था? अगर मरीज भर्ती होने के समय किसी डॉक्टर का पत्र या नोट लेकर आया है, तो कृपया उसकी प्रमाणित प्रति हमें उपलब्ध कराएं।

    उत्तर: इस सवाल के जरिए एलआईसी यह जानना चाहती है कि पॉलिसीधारक का इलाज कितने समय से चल रहा था। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बीमारी की अवधि के दौरान पॉलिसी खरीदी या रिवाइव तो नहीं की गई है।

    अब अस्पताल को अपने रिकॉर्ड की जांच करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भर्ती होने से पहले पॉलिसीधारक का अस्पताल में इलाज हुआ था या नहीं। अगर हां, तो उसका ब्योरा दें। कई मामलों में मरीज पहले किसी दूसरे अस्पताल से इलाज करा रहा हो सकता है, इसलिए अगर अस्पताल के पास इस संबंध में जानकारी है, तो उसे फॉर्म में जरूर देना चाहिए और अगर सबूत मौजूद हैं, तो उसे जमा करना चाहिए।

    प्रश्न 4: प्रवेश के समय क्या था?

    • उसकी शिकायत की प्रकृति क्या थी?
    • उसके द्वारा बताई गई शिकायत की अवधि क्या थी?

    उत्तर: यहाँ दो प्रश्न पूछे गए हैं। पहले प्रश्न में, एलआईसी यह जानना चाहती है कि अस्पताल में भर्ती होने के समय पॉलिसीधारक को कौन सी स्वास्थ्य समस्या थी। उदाहरण के लिए: पेट दर्द, सांस लेने में समस्या, आदि।

    दूसरे प्रश्न में, एलआईसी यह जानना चाहती है कि अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार पॉलिसीधारक कितने समय से उपरोक्त समस्या से पीड़ित था। अतः अस्पताल को उनके रिकॉर्ड के अनुसार इन दोनों प्रश्नों के उत्तर लिखने चाहिए।

    प्रश्न 5(क): भर्ती के समय मरीज ने अपना वास्तविक इतिहास क्या बताया था? (बीमारियों की तिथियां, अवधि, बताए गए लक्षण आदि)

    उत्तर: इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग रोगियों के लिए अलग-अलग हो सकता है। अस्पताल को अपने रिकॉर्ड के अनुसार पॉलिसीधारक के भर्ती होने की सभी तिथियाँ, भर्ती होने की अवधि और पॉलिसीधारक की बीमारी के लक्षण बताने होते हैं।

    प्रश्न 5(ख): क्या यह इतिहास मरीज़ ने स्वयं बताया था या किसी और ने?

    उत्तर: अस्पताल को यह बताना चाहिए कि मरीज ने अपनी सभी समस्याएं खुद बताई थी या किसी और ने।

    प्रश्न 5(ग): यदि रोगी ने स्वयं इतिहास नहीं बताया है, तो रिपोर्ट करने वाले व्यक्ति का नाम और संबंध बताएं। क्या रोगी उस समय मौजूद था और क्या वह होश में था?

    उत्तर: कई मामलों में मरीज़ खुद अपनी समस्या बताने की स्थिति में नहीं होता। अगर मरीज़ ने खुद अपनी समस्या बताई है तो मरीज़ का नाम लिखना चाहिए। लेकिन अगर किसी और ने उसकी तबीयत के बारे में बताया है तो संबंधित व्यक्ति का नाम और अन्य विवरण प्रस्तुत करना चाहिए। साथ ही मरीज़ की उस समय की वास्तविक स्थिति भी बतानी चाहिए।

    प्रश्न 5(घ): इतिहास किसे बताया गया और किसके द्वारा इसे रिकॉर्ड किया गया?

    उत्तर: यहाँ पर अस्पताल के उस डॉक्टर अथवा स्टॉप का नाम और विवरण देना होता है जिसने भर्ती के समय पॉलिसीधारक का विवरण दर्ज किया था।

    प्रश्न 5(ङ): क्या वह डॉक्टर, जिसे इतिहास बताया गया था/जिसने इतिहास दर्ज किया था, अभी भी अस्पताल में है, और यदि नहीं, तो उसका वर्तमान पता क्या है?

    उत्तर: इस प्रश्न में उस डॉक्टर या कर्मचारी का नाम और पता देना होता है जिसने पॉलिसीधारक की बीमारी और अन्य विवरण दर्ज किए हैं। यदि फॉर्म भरते समय यह व्यक्ति अस्पताल में कार्यरत नहीं है और अस्पताल के पास उस व्यक्ति का रिकॉर्ड है, तो भी अस्पताल को इस प्रश्न के उत्तर में उस व्यक्ति का विवरण दर्ज करना चाहिए।

    प्रश्न 6: अस्पताल में क्या निदान किया गया?

    उत्तर: इस प्रश्न का उत्तर अस्पताल अपने रिकार्ड के अनुसार दर्ज करता है।

    प्रश्न 7: क्या अस्पताल में भर्ती होने के समय रोगी को कोई अन्य बीमारी थी या बीमारी पहले से थी? यदि हाँ, तो वह क्या थी? कृपया निम्नलिखित विवरण दें:

    • रिपोर्ट किया गया इतिहास
    • रोगी द्वारा पहली बार देखे जाने की तिथि
    • किसके द्वारा इलाज किया गया?
    • किसके द्वारा इतिहास रिपोर्ट किया गया? (यदि रोगी ने स्वयं नहीं किया, तो कृपया बताएं कि क्या यह उसकी उपस्थिति में और उसके ज्ञान में था)
    • किसके द्वारा इतिहास नोट किया गया और रिकॉर्ड किया गया? (यदि डॉक्टर वर्तमान में अस्पताल में नहीं है, तो कृपया उसका वर्तमान पता दें)

    उत्तर: कई मामलों में कुछ मरीज़ किसी एक बड़ी समस्या के कारण अस्पताल में भर्ती होते हैं, लेकिन वे पहले से किसी अन्य बीमारी से भी पीड़ित हो सकते हैं। यदि मृतक पॉलिसीधारक के साथ ऐसा मामला है, तो उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार लिखे जाने चाहिए और यदि ऐसा नहीं है, तो इन प्रश्नों के उत्तर में "लागू नहीं" लिखा जाना चाहिए।

    प्रश्न 8: अस्पताल से उनकी छुट्टी की तारीख क्या थी?

    उत्तर: इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग मामलों में अलग-अलग हो सकता है। कुछ मरीज़ इलाज के दौरान मर जाते हैं। इसलिए मृत्यु के बाद जब शव परिवार को सौंपा जाता है, तो वह तारीख़ यहाँ लिखी जानी चाहिए। कुछ मामलों में मरीज़ को स्वस्थ मानकर छुट्टी दे दी जाती है, लेकिन घर पहुँचने के कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। इसलिए ऐसे मामलों में मरीज़ को जिस तारीख़ को छुट्टी दी गई थी, वह यहाँ लिखी जानी चाहिए।

    प्रश्न 9: जब उन्हें छुट्टी दी गई तो उनकी हालत क्या थी?

    उत्तर: यदि डिस्चार्ज के समय मरीज की स्वास्थ्य स्थिति सामान्य थी, लेकिन उपचार की आवश्यकता थी, तो अस्पताल मरीज की स्थिति के अनुसार विवरण भरता है। यदि मरीज का शव उसकी मृत्यु के बाद सौंपा गया है, तो इस प्रश्न का उत्तर "मृतक" लिखना चाहिए।

    प्रश्न 10: क्या उनका पहले भी अस्पताल में इनपेशेंट या आउटपेशेंट के रूप में इलाज हुआ था? यदि हाँ, तो कृपया बताएँ:

    • पहली बार भर्ती होने की तिथि या आउटपेशेंट के रूप में पहली बार इलाज की तिथि।
    • छुट्टी की तिथि और छुट्टी के समय की स्थिति।
    • बीमारी की प्रकृति।

    उत्तर: कई बार मरीज सामान्य तरीके से अपनी बीमारी का इलाज करवा रहा होता है, बाद में उसकी तबीयत खराब होने पर उसे भर्ती कर लिया जाता है। अगर ऐसा होता है तो अस्पताल अपने रिकॉर्ड के अनुसार उपरोक्त सवालों के जवाब नोट कर लेता है, अन्यथा इन सवालों के जवाब नहीं लिख दिया जाना उचित होता है।

    एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 के लिए सावधानियां

    आमतौर पर जब अस्पताल में इलाज शुरू होता है तो मरीज को अपना नाम, पता और अन्य जानकारी देनी होती है, लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि अस्पताल के रिकॉर्ड में मरीज की सही जानकारी उपलब्ध नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मरीज अपनी सारी जानकारी अस्पताल में अनुमानित तरीके से पेश करता है, कुछ मामलों में यह गलती अस्पताल के कर्मचारियों से भी हो जाती है।

    उदाहरण के लिए रमेश कुमार सोनी नाम का व्यक्ति 25 साल का है और रूम नंबर 215, सांस्कृतिक संकुल के सामने, हुकुलगंज वाराणसी में रहता है। लेकिन मृत्यु दावे के बाद जब अस्पताल द्वारा यह फॉर्म भरा जाता है तो पता चलता है कि अस्पताल के रिकॉर्ड में उसका नाम रमेश कुमार, उम्र 23 साल और पता हुकुलगंज है।

    अब अगर अस्पताल अपने रिकॉर्ड के अनुसार ऐसी अधूरी जानकारी देता है तो यह मृत्यु दावा प्रक्रिया में बड़ी बाधा बन सकता है। इसलिए हमारा सुझाव आपके लिए यही होगा कि अस्पताल से यह रिकॉर्ड लेते समय पॉलिसीधारक के मूल दस्तावेजों से इसकी जांच जरूर कर लें। अन्यथा दावा प्रक्रिया में देरी हो सकती है और विशेष मामलों में इसे रद्द भी किया जा सकता है।

    अस्पतालों को हमारा सुझाव यह भी होगा कि यह फॉर्म जीवन बीमा मृत्यु दावा प्रक्रिया और निर्णय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में आपको मृतक की सभी जानकारी सही-सही भरनी चाहिए। अगर आपके रिकॉर्ड में कोई त्रुटि है और आपको लगता है कि यह वास्तव में अस्पताल की गलती है या आपको लगता है कि यह सिर्फ डेटा दर्ज करने में गलती है, तो सही जानकारी देना सबसे अच्छा है। बशर्ते आपके रिकॉर्ड और फॉर्म में दी गई जानकारी के सत्यापन में कोई गड़बड़ी न हो और अस्पताल का धोखाधड़ी का कोई इरादा न हो।

    एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 की सैंपल फाइल

    हालाँकि एलआईसी का यह फॉर्म अस्पताल द्वारा भरा जाता है, इसलिए इस फॉर्म के सैंपल फाइल की बहुत अधिक जरुरत नहीं होती है। लेकिन यदि आप एलआईसी में एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं, तो कुछ मामलों में आपको इसकी जरुरत हो सकती है। अतः आपकी जरुरत और सुविधा को ध्यान में रखते हुए हम एलआईसी फॉर्म संख्या 3816 की सैंपल फाइल साझा कर रहे हैं। आप इसे डाउनलोड कर सकते हैं और जरुरत पड़ने पर मार्गदर्शन हेतु इसका सहारा ले सकते हैं।

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    एक्सपर्ट की मदद लें

    वैसे तो हमने इस लेख की मदद से एलआईसी का फॉर्म नंबर 3816 भरने के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से दी है। लेकिन यह विषय और इसकी संभावनाएं बहुत व्यापक हैं। अलग-अलग मृत्यु मामलों में हर सवाल का जवाब अलग-अलग हो सकता है। इसलिए अगर आप एक आम आदमी हैं और मृत्यु दावा प्रक्रिया को पूरा करने में संघर्ष कर रहे हैं, तो आपके लिए हमारा सुझाव यही होगा कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

    एलआईसी के अनुभवी एजेंट ही एलआईसी मृत्यु दावा फॉर्म के बारे में विस्तृत जानकारी रखते हैं, इसलिए इस फॉर्म के लिए आपको अपने नजदीकी किसी अनुभवी एजेंट से संपर्क करना चाहिए। अगर आपको इस संबंध में कोई एजेंट नहीं मिल पा रहा है, तो हम आपके लिए नीचे एक लिंक बटन शेयर कर रहे हैं, जिस पर क्लिक करके आप अपने नजदीकी एलआईसी एजेंट से संपर्क कर सकते हैं।

    वीडियो से जानें फॉर्म 3816 कैसे भरें

    एलआईसी का फॉर्म नंबर 3816 डेथ क्लेम के फैसले में अहम भूमिका निभाता है। एक तरफ यह आपके डेथ क्लेम को बहुत आसान बनाता है, वहीं दूसरी तरफ यह आपके डेथ क्लेम को खारिज भी कर सकता है। वैसे तो इस लेख के जरिए बहुत कुछ स्पष्ट करने की कोशिश की गई है, लेकिन इसके बावजूद हम आपको सुझाव देंगे कि इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले एक बार नीचे शेयर किया गया पूरा वीडियो ध्यान से देख लें। ऐसा करते समय जरूरी नोट्स भी तैयार कर लें, ताकि प्रक्रिया के दौरान कोई गलती न हो।

    निष्कर्ष

    एलआईसी डेथ क्लेम फॉर्म नंबर 3816 जीवन बीमा पॉलिसियों की मृत्यु दावा प्रक्रिया के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसलिए, इस फॉर्म को भरते समय सटीकता और प्रामाणिकता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस फॉर्म में दी गई जानकारी सीधे आपके मृत्यु दावे के फैसले को प्रभावित कर सकती है।

    इस लेख के माध्यम से, हमने इस फॉर्म को भरने के बारे में बहुत विस्तार से जानकारी दी है, इसके साथ ही मैंने यह भी बताया है कि फॉर्म भरते समय आपको क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। इसके अलावा, डमी डेटा के साथ एक सैंपल फाइल भी दी गई है, ताकि आपको मूल फॉर्म भरते समय बेहतर समझ हो।

    चूंकि इस फॉर्म को भरते समय कई तकनीकी और औपचारिक पहलू होते हैं, इसलिए यदि आप एक आम आदमी हैं, तो आपके लिए हमारी सलाह होगी कि इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लें। ऐसा करने से न केवल आपकी दावा प्रक्रिया सरल होगी बल्कि दावा प्रक्रिया में किसी भी त्रुटि से बचना आपके लिए उपयुक्त होगा।

    हमें उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास आपके लिए एलआईसी मृत्यु दावा फॉर्म संख्या 3816 को समझने में मददगार साबित होगा। लेकिन अगर आपके मन में कोई सवाल है तो आप उपरोक्त वीडियो के कमेंट बॉक्स में या इस लेख के कमेंट बॉक्स में अपने सवाल पूछ सकते हैं।